शुरुआत अपने घर से ही करते हैं। जिस तरह घर में खाना पकाने के लिए रसोईघर और बातचीत करने, टी.वी. देखने व अन्य सामाजिक गतिविधियों के लिए बैठकखाना और सोने के लिए शयन कक्ष का अपना महत्व है, उसी तरह सीखने-सिखाने के लिए एक क्लासरूम कैसा होना चाहिए- इसका भी उतना ही महत्व है। अगर आपके रसोईघर में केवल गैस हो, एक नल हो और कुछ बर्तन तो आप कितने भी रचनात्मक क्यों न हों, इससे आप क्या पका सकते हैं? शायद कुछ नहीं। अगर साथ में आटा हो, तो चपाती से ज्यादा कुछ नहीं बन सकता और अगर आटे के अलावा नमक व तेल भी हो तो शायद ज्यादा-से-ज्यादा पराठा, पूरी या नमकीन बनाए जा सकते हैं। क्या कोई व्यक्ति ऐसा रसोईघर पसन्द करेगा जिसमें सिर्फ आटा, नमक और तेल हो, जिनसे केवल एक-दो खाद्य-पदार्थ ही बनाए जा सकें ?
शायद नहीं। हर कोई चाहेगा कि रसोईघर में सब्जियाँ, जीरा, धनिया, अन्य मसाले और शक्कर भी हो। कहने का मतलब यह है कि रसोईघर में जितनी अधिक सामग्री होगी, उतने ही विविधता पूर्ण पकवान बनाना सम्भव हो पाएगा। जो बात रसोईघर पर लागू होती है वो कक्षा पर भी लागू हो सकती है। आप खुद को एक शिक्षक के रूप में रखकर सोचिए- सिर्फ ब्लैकबोर्ड, कुछ चॉक के टुकड़े और डस्टर वाली कक्षा में आप कितना सिखा पाएँगे और बच्चे कितना सीख पाएँगे? मेरे ख्याल से कक्षा ऐसी होनी चाहिए जहाँ सीखने की गुंजाइश हो। एक बच्चा शिक्षक के व्याख्यान के बजाय अपने अनुभव से अधिक सीखता है। उसके आसपास जो घट रहा है, वह उसे किस्सों, कहानियों, गुड्डों-गुड़ियाओं के खेल, चित्र बनाना, किताबें पढ़ना और अन्य खेलों के माध्यम से संप्रेषित करते हुए बहुत कुछ सीखता है। बच्चा तभी सीखेगा, उसमें रचनात्मकता का तभी विकास होगा, जब क्लास रूम में शिक्षक गतिविधियाँ करवाएगा। अगर कक्षा में जगह नहीं है तो बरामदे का इस्तेमाल किया जा सकता है। या डेस्क एक कोने में लगाकर भी जगह की जुगाड़ बनाई जा सकती है। अगर फिर भी जगह नहीं है तो काफी सारी सामग्री जूतों के डिब्बों या खुले ताक में रखी जा सकती है। बच्चे अपनी जरूरत के मुताबिक सामग्री यहाँ से उठाकर अपनी डेस्क पर ले जा सकते हैं।
क्या यह शिक्षा है?
आप पूछ सकते हैं कि रेत या मिट्टी से खेलकर या साँप-सीढ़ी/लूडो खेलने से बच्चा क्या शिक्षा हासिल करेगा? जरा सोचिए, दरअसल इससे बच्चों की शारीरिक, मानसिक व सामाजिक रूप से सक्रिय रहने की आन्तरिक जरूरत पूरी होती है। अगर गतिविधियों के लिए आप समय नहीं भी देंगे, तब भी बच्चा समय निकाल ही लेगा, भले ही आप पसन्द करें या न करें। आपने अकसर बच्चों को अपने बस्ते या पेंसिल बॉक्स को खोलते व बन्द करते, पेंसिल को नुकीला बनाते, टिफिन बॉक्स खँगालते या बाथरूम आते-जाते देखा ही होगा। अगर आप औपचारिक शिक्षा का समय कम कर देंगे तो बच्चे आपकी बातों की तरफ ज्यादा ध्यान देंगे क्योंकि उन्हें पता रहेगा कि आप उन्हें जल्द ही पाठ्येतर गतिविधियों में भाग लेने की अनुमति दे देंगे। जब बच्चे अपनी योजनाओं और उनके क्रियान्वयन पर चर्चा करते हैं तो वे आत्मनिर्भर, आत्मविश्वासी और रचनात्मक बनना सीख रहे होते हैं। साथ ही वे यह भी सीखते हैं कि दूसरों के साथ मिलकर काम कैसे किया जाए। वे विभिन्न पदार्थों के गुणधर्मों के बारे में सीखते हैं। वे जि़म्मेदार बनना और किसी वस्तु को वापस अपने स्थान पर रखना सीखते हैं।
उन्हें समझ में आता है कि ये सब चीजें इकट्ठी करके उनकी भरपाई करनी होगी। वे व्यवहार देखते हैं और भावनाओं की अनुभूति करते हैं। यही नहीं, वे दूसरे बच्चों से भी सीखते हैं। इसलिए बच्चों को समय देना बहुत जरूरी है, ताकि उन्हें अपनी गतिविधियों को बार-बार करने का मौका मिल सके और वे अपनी समझ व रचनात्मकता को परिष्कृत कर सकें। बच्चे स्वस्थ व प्रसन्नचित रहें, इसके लिए उनका खेलना जरूरी है। एक शिक्षक होने के नाते आप उनके खेलने में मदद कर सकते हैं और साथ ही अपने शैक्षणिक मकसद को भी पूरा कर सकते हैं। उदाहरण के लिए कहानियाँ सुनाना और किताबें पढ़ना अत्यंत संतोषप्रद हो सकता है। जो बच्चे पढ़ना जानते हैं, वे अगर दूसरे बच्चों को पढ़कर सुनाते हैं, तो उनकी पढ़ने की क्षमता बेहतर बनती है। अगर औपचारिक पाठ के बीच में छूट हो कि वे अपनी मर्जी से अपनी पसन्द की कहानियाँ या कविताओं की किताब उठा सकते हैं, तो बच्चों को किताबों में आनन्द आने लगता है।
सक्रिय कक्षा का प्रबन्धन
एक सक्रिय कक्षा का निर्माण निश्चित रूप से काफी श्रमसाध्य है, तथा उसका प्रबन्धन तो और भी कठिन है लेकिन एक बार यह आपकी दिनचर्या का हिस्सा बन जाए, इसके बाद आप एक खुशमिजाज शिक्षक होंगे और बच्चे भी प्रसन्न और सृजनशील होंगे। लेकिन ऐसी स्थिति तक पहुँचना थोड़ा मुश्किल और तनावमुक्त हो सकता है।
अगर आपके पास बहुत-सी तरह-तरह की गतिविधियाँ हों और आप उन्हें रोज करवाएँ तो आप पाएँगे कि बच्चों को पढ़ाना कितना आसान हो गया है। आप बच्चों को छोटे-छोटे समूहों में बाँटकर उनके साथ काम कर सकेंगे। हर बच्चे को समय व आपके ध्यान की जरूरत होती है। कुछ बच्चों को अंकों के सम्बन्ध में आपकी मदद की जरूरत पड़ती है तो कुछ को भाषा को लेकर आपके विशेष ध्यान की। आप इन सभी बच्चों की तभी मदद कर सकते हैं जब बाकी कक्षा अलग-अलग कामों में व्यस्त रहे। इसे हम इस तरह समझ सकते हैं।
अगर आप क्लास में एक गतिविधि आयोजित करते हैं जो दो हफ्ते बाद आपके द्वारा करवाई जाएगी, तो बच्चों के लिए वह प्रबन्धन काफी मुश्किल हो जाएगा। उदाहरण के लिए अगर आप यह तय करते हैं कि आज सभी बच्चे क्ले एरिया में ही काम करेंगे तो मिट्टी के लिए सभी 30 से 40 बच्चों में धक्का-मुक्की होने लगेगी या मान लीजिए आप किसी दिन तय करते हैं कि आज बच्चे कहानियों-कविताओं की पुस्तकें पढ़ेंगे। ऐसे में अगर आपकी कक्षा की लाइब्रेरी में के वल15 पुस्तकें हुईं तो बाकी बच्चे क्या करेंगे? किताबें पाने के चक्कर में कक्षा में इतनी अफरा-तफरी मच जाएगी कि आप ‘लर्निंग क्लास रूम’ के विचार को ही अलविदा कहने का मन बना लेंगे।
इसलिए अगर आपकी क्लास में 40 बच्चे हैं तो आपको चाहिए कि अधिक-से-अधिक गतिविधियाँ एक साथ करवाएँ ताकि सभी बच्चे कहीं-न-कहीं व्यस्त रहें और किसी भी गतिविधि क्षेत्र में धक्का-मुक्की वाली स्थिति निर्मित न हो। जैसे एक मोटे-मोटे हिसाब से चार बच्चे रेत से खेल सकते हैं, और क्ले एरिया में अगर सात ही बच्चे होंगे तो काफी खुश रहेंगे। पाँच से दस बच्चों को चित्रकला में व्यस्त रखा जा सकता है। चार बच्चे घर-घर खेल सकते हैं तो दो बच्चे पुराने फोन व स्टेथिस्कोप से डॉक्टर-मरीज के खेल में व्यस्त रह सकते हैं। दो बच्चे काटने-चिपकाने में, चार बच्चे पुस्तकों में, पाँच बच्चे बीज या आइसक्रीम की स्टिक्स इत्यादि के साथ पैटर्न या कोई आकृति बनाने में लगाए जा सकते हैं, दो बच्चे अलार्म घड़ी, इस्त्री या टूटे स्विच खोलने-जोड़ने में मशगूल रह सकते हैं, पाँच-छह बच्चे पजल्स में व्यस्त रखे जा सकते हैं। कहने का मतलब यह है कि विभिन्न गतिविधियों में बच्चों को व्यस्त रखने से कक्षा में अराजकता का माहौल पैदा नहीं होगा। अगर आपकी क्लास में 30 बच्चे हैं और आप अकेले शिक्षक हैं तो बच्चों को दो समूह में बाँटकर खेल गतिविधियों को दिन भर जारी रखा जा सकता है। जब आप एक समूह को पढ़ाएँगे तो दूसरे समूह को खेलों में व्यस्त रखा जा सकता है। जैसे-जैसे आप बच्चों की कॅापियाँ जाँचते जाएँ, उन्हें एक-एक करके गतिविधियों की तरफ जाने दीजिए। यह बच्चों को एक साथ पढ़ाने या उन्हें एक साथ गतिविधियाँ करवाने से बेहतर रहेगा।
इन तमाम व्यवस्थाओं के साथ बच्चों का सामंजस्य बैठाने में दो से तीन सप्ताह का समय लग सकता है। लेकिन एक बार पता लगने के बाद कि उनके लिए हर खेल उपलब्ध है, उनके बीच धक्का-मुक्की कम हो जाएगी। उन्हें मालूम रहेगा कि अगर आज उन्हें मिट्टी से खेलने का मौका नहीं मिल रहा है तो कोई बात नहीं, कल या परसों उनकी बारी आएगी।
आपको इस बात पर विशेष ध्यान देना होगा कि सब चीजें वापस अपनी जगह पर ही रखी जाएँ। सुविधा के लिए डिब्बों पर लेबल या चित्र भी चिपकाए जा सकते हैं, पहले चार-पाँच हफ्ते काफी व्यस्त रहेंगे। उसके बाद बच्चों को आदत पड़ जाएगी और वे जिस गतिविधि में मशगूल हैं उसमें ध्यान केन्द्रित करना सीख जाएँगे। बच्चे यह अनुभव करके काफी खुश रहते हैं कि वे बहुत कुछ अपने ढंग से कर पा रहे हैं। ध्यान रखिए, नियम बस इतना ही नहीं-लर्निंग सेंटर्स का रोज इस्तेमाल होना चाहिए।
अब अगला सवाल है कि इस गतिविधि क्षेत्र के तहत क्या-क्या शमिल हो सकता है? इस सम्बन्ध में हमने जो एक सूची विकसित की है वह इस प्रकार है :
क्लास रूम का डिजाइन
अभी तक हमने कक्षा के प्रबन्धन पर काफी चर्चा की, लेकिन डिजाइन पर कोई बात नहीं की। ऐसा इसलिए क्योंकि अगर आप सक्रिय कक्षा के प्रबन्धन के दौरान छुट-पुट तनाव झेलने के लिए तैयार हो जाएँ तो फिर ऐसी क्लास बनाने में मेहनत तो लगती है परन्तु तनाव नहीं। अधिकांश कक्षाओं में ब्लैकबोर्ड, डस्टर, चॉक और बेंच होते हैं। कुछ अगर चार्ट भी होते हैं, तो वे प्रायः गंदे, धूल भरे और दीवार पर इतनी ऊँचाई पर टँगे होते हैं कि उनका इस्तेमाल ही नहीं हो पाता। अगर किसी शिक्षिका की किस्मत अच्छी है तो उसे अलमारी या खुली शेल्फ मिल जाती है। चिकनी मिट्टी व रेत के लिए बरामदा काफी उपयोगी साबित हो सकता है। दीवारों का इस्तेमाल पेंटिग के लिए किया जा सकता है।
श्यामपट्ट के इर्द-गिर्द का इलाका
कक्षा में आपके पास एक श्यामपट्ट तो होता ही है। उसके आसपास की जगह के इस्तेमाल की क्या सम्भावनाएँ हैं? किस तरह की सामग्री आप वहाँ व्यवस्थित कर सकते हैं जो सदैव आपकी पहुँच में होनी चाहिए? मेरी कोशिश होती है कि यह सब सामग्री श्यामपट्ट के आसपास मौजूद रहेः
एक कैलेण्डरमौसम का चार्टहिन्दी व अँग्रेजी का वर्णमाला चार्टएक से दस तक के अंक वाला चार्ट10, 20, 30 जैसी संख्याओं का चार्टसप्ताह के दिनों वाला चार्टवर्ष के महीनों वाला चार्टभारत का नक्शाविश्व का नक्शा दरवाजे पर पेंट किया गया ऊँचाई नापने वाला चार्ट
इन सभी चार्ट्स को ब्लैकबोर्ड के आसपास शिक्षक की पहुँच में ही लटकाया जा सके तो काफी अच्छा रहेगा। इससे शिक्षक को जब भी जरूरत पड़ेगी, वह इसका तुरन्त इस्तेमाल कर सकेगा। आमतौर पर कक्षा में ज्यादा जगह नहीं होती। ऐसे में यह जरूरी है कि श्यामपट्ट के पास कुछ मजबूत कील लगाकर रखी जाएँ जिन पर चार्ट लटकाए जा सकते हैं। अगर इन्हें पूरी कक्षा में इधर-उधर लगाकर रखा जाएगा तो जरूरत के वक्त उनका इस्तेमाल करना काफी मुश्किल होगा। डेस्कों के बीच से जाकर चार्ट लाना और फिर उन्हें वापस अपनी जगह पर रखने में ही काफी वक्त बर्बाद हो जाएगा। दुर्भाग्य से ज्यादा तर क्लास रूम में कुछ ही चार्ट होते हैं, और वे भी वर्षों से धूल खा रहे होते हैं। अगर कोई शिक्षिका वर्णमाला, नक्शे में स्थान, महीने इत्यादि बताने के लिए इन चार्ट्स का इस्तेमाल करेंगी तो बच्चे भी सन्दर्भ के तौर पर उनका इस्तेमाल करना सीखेंगे।
कुछ कक्षाओं में ब्लैकबोर्ड काफी ऊँचाई पर होते हैं। अगर बोर्ड के ऊपरी हिस्से तक पहुँचने में कठिनाई आती है तो उस स्थान का इस्तेमाल कुछ अंकों या अक्षरों को लिखने में किया जा सकता है।
अगर आपकी क्लास में बड़ा-सा श्यामपट्ट है तो आप उस पर लाइनें भी पेंट करवा सकती हैं। अँग्रेजी शब्दों के लिए लाल व नीले रंग की दो रेखाएँ बनवाई जा सकती हैं, वैसी ही जैसी अँग्रेजी लिखने की कॉपी में होती हैं।
ऐसी ही रेखाएँ हिन्दी शब्दों के लिए और अंकों को लिखने के लिए चौकोर वर्ग बनवाए जा सकते हैं। इससे बच्चों को यह समझाना कहीं ज्यादा आसान हो जाएगा कि कोई अक्षर या अंक कहाँ लिखा जाना चाहिए। ब्लैकबोर्ड के नीचे ही ऐसा स्थान भी होना चाहिए जिस पर डस्टर और चॉक रखे जा सकें। चार्ट, स्केल और कहानियों की पुस्तकें रखने के लिए भी यह एक अच्छा स्थान हो सकता है। जहाँ तक सम्भव हो शिक्षिका को सामग्री लाने के लिए कक्षा से बाहर जाने की जरूरत नहीं पड़नी चाहिए।
ब्लैकबोर्ड के ऊपरी हिस्से में तीन कील या हुक होने चाहिए जिन पर आप चार्ट लटका सकें। आजकल कई स्कूलों में बोर्ड के ऊपरी हिस्से में एक डोरी या तार बँधा होता है। इसका फायदा यह है कि शिक्षक बच्चों से चर्चा करते समय उस डोरी पर, कपड़े सुखाने में इस्तेमाल होने वाली चिमटी से, कागज लटकाकर उस पर लिख सकता है। इस कागज को बाद में बच्चों की ऊँचाई को ध्यान में रखते हुए एक अन्य डोर से लटकाकर रखा जा सकता है।
एक अन्य बोर्ड बच्चों के लिए हो सकता है। बच्चे इसका इस्तेमाल कर सकें इसके लिए इसे अपेक्षाकृत कम ऊँचाई पर लगाना पड़ेगा। अगर यह सम्भव नहीं हो तो कक्षा या बरामदे की ही एक दीवार पर गेरू या पीली मिट्टी पुतवा दीजिए। इसे बच्चे बोर्ड के रूप में इस्तेमाल कर सकते हैं।
पुस्तकालय का फैलाव
स्कूल पुस्तकालय का इस्तेमाल उसके मकसद के अनुरूप नहीं किया जाता। सप्ताह में एक दिन लाइब्रेरी का पीरियड होता है। इसमें बच्चे पुस्तकालय में जाते जरूर हैं, लेकिन वे वहाँ या तो चुपचाप बैठे रहते हैं या फिर अनमने ढंग से किसी पत्रिका के पन्ने पलटते रहते हैं। कुछ अपने साथियों के साथ गपशप करते रहते हैं। इतनी देर में घण्टी बज जाती है और सारे बच्चे उठकर चले जाते हैं। इन पुस्तकालयों के साथ एक समस्या यह होती है कि यहाँ छोटे बच्चों के लिए अच्छी कहानियों की पुस्तकों का अक्सर अभाव दिखाई देता है।
यदि आप आपके स्कूल के पुस्तकालय में लाइब्रेरियन हैं तो उससे बच्चों को कहानियाँ सुनाने का आग्रह किया जा सकता है। अगर एक शिक्षिका के रूप में आप खुद बच्चों को पुस्तकालय में ले जाती हैं तो उन्हें कहानियाँ जरूर सुनाएँ। ऐसा करके आप बच्चों को किताबों की दुनिया से परिचित करवा सकती हैं, परन्तु साथ ही यह जरूरी है कि आप अपनी कक्षा में भी एक छोटा-सा पुस्तकालय बनाकर रखें।
इससे जब भी बच्चों के पास वक्त होगा, वे पुस्तक लेकर अपनी जगह पर बैठकर उसे पढ़ सकेंगे। अगर कक्षा में जगह होगी तो वे लाइब्रेरी एरिया में फर्श पर बैठकर किताबों का आनन्द उठा सकते हैं।
अगर आप रोज किताबें पलटने व चर्चा करने का मौका दें तो बच्चे आपसे विस्तार से बातचीत करने लगेंगे। उनकी बातचीत को टेप भी किया जा सकता है। स्कूलों में विस्तृत चर्चा करने का आमतौर पर वक्त नहीं होता है। ऐसी गतिविधियाँ कुछ हद तक इस कमी को पूरा कर सकती हैं।
बच्चे चुटकुलों, पहेलियों और कविताओं की छोटी-छोटी पुस्तकें भी खुद तैयार कर सकते हैं। आप भी बच्चों के लिए कई पुस्तकें बना सकते हैं। हाथ से तैयार की गईं ये पुस्तकें एक दीवार के किनारे या किसी एक शेल्फ पर रखी जा सकती हैं।
मिट्टी और रेत
चिकनी मिट्टी हर जगह उपलब्ध है। इसे एक बाल्टी के ऊपर गीले कपड़े पर रखा जाना चाहिए। क्ले एरिया में बच्चों के बैठने के लिए प्लास्टिक या रद्दी अखबार बिछाए जा सकते हैं। हर रोज इस मिट्टी के लोंदे बनाकर बीच में रख दें, ताकि बच्चे इन्हें उठाकर आकार देने की कोशिश करेंगे। साथ ही कपड़े के गीले टुकड़े भी रख दिए जाएँ।
बच्चों को खेलना बड़ा अच्छा लगता है। रेत को गीला करने के लिए एक छोटी-सी बाल्टी में पानी देना पर्याप्त होगा। सूखी रेत को छाना जा सकता है, जबकि गीली रेत से ‘पर्वत’, ‘नदियाँ’ आदि बना सकते हैं। बच्चों को कई प्रकार के बर्तन, रेत खोदने के साधन, लकड़ी के गुटके/टुकड़े, सींक, प्लास्टिक, पाइप इत्यादि दिए जा सकते हैं, ताकि उनकी रचनात्मकता को भरपूर मौका मिले।
साभार : टीचर्स ऑफ इण्डिया
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