सुप्रीमकोर्ट और हाईकोर्ट ने दिखाया आईना, संविधान से ऊपर नहीं सरकारें : सरकार की बेेरोकटोक पर अदालत की रोक
इलाहाबाद। प्रोन्नति में आरक्षण का मामला हो या शिक्षामित्रों की मनमानी नियुक्ति या फिर आयोगों में मानक दरकिनार कर अपने चहेतों की नियुक्ति। देश की अदालतों के हालिया फैसलों ने यह साबित कर दिया है कि
सरकारें संविधान से ऊपर नहीं हैं। न्याय मिलने में देर हो सकती है पर अंधेर अभी भी नहीं है।
यहां हाईकोर्ट के मुख्य न्यायमूर्ति डॉ. डीवाई चंद्रचूड की टिप्पणी काबिले गौर है कि अदालतों में बढ़ रही मुकदमों की संख्या यह
साबित करती है कि न्यायपालिका पर लोगों का भरोसा कम नहीं हुआ है। चीफ जस्टिस की यह टिप्पणी उनके हालिया फैसलों से सही भी साबित होती है।
लोक सेवा आयोग अध्यक्ष के खिलाफ आंदोलन कर रहे लाखों युवाओं के लिए
अदालत का फैसला बड़ी राहत बनकर आया है। पिढले ढाई वर्षों से इनको या
तो पुलिस की लाठियां मिली या फिर झूठे आश्वासन। इतना ही नहीं उच्चतर
शिक्षा आयोग और माध्यमिक शिक्षा सेवा चयन बोर्ड के अध्यक्षों तथा कुछ सदस्यों की नियुक्तियों का रद्द कर अदालत ने सरकार की मनमानी कार्यशैली पर लगाम लगाई है। अनिल यादव के मामले में कोर्ट ने सरकार की मंशा को भी कटघरे में खड़ा किया है, जब तमाम योग्य आवेदक मौजूद हैं तो एक ही व्यक्ति के नाम पर विचार क्यों। कोर्ट ने नियुक्ति की संवैधानिक व्यवस्था मौजूद होने के बावजूद उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा मनमाना निर्णयलिए जाने की कड़ी आलोचना भी की है।
अगर गौर किया जाए तो भर्ती आयोगों की कार्यशैली और नियुक्तियों में व्यापक धांधली के खिलाफ अभ्यर्थियों को जो भी राहत मिल सकी है, वह अदालत से ही मिली है। चाहे वह दरोगा भर्ती में व्हाइटनर इस्तेमाल का मामला रहा हो या प्रतियोगी परीक्षाओं में गलत सवाल पूछने का या फिरसहायक अध्यापक पदों पर भर्ती में धांधली का। शायद यही वजह है कि प्रदेश सरकार द्वारा शुरू की गई हर नियुक्ति प्रक्रिया को अदालत की कसौटी परकसने की जरूरत पड़ी। प्रतियोगी छात्रों का मुकदमा लड़ने वाले वकील अनिलसिंह बिसेन कहते हैं मौजूदा सरकार में प्रतियोगी छात्रों के लिए न्यायपालिका ही एक ही मात्र उम्मीद है।
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