मन की बात : "मातृत्व अवकाश" तो इनका हक है जिसे तीन से बढ़ाकर आठ माह करने के महिला एवं बाल विकास मंत्रालय के प्रस्ताव को प्रधानमंत्री ने बेहतर……………
कामकाजी महिलाओं के मातृत्व अवकाश को तीन से बढ़ाकर आठ माह करने के महिला एवं बाल विकास मंत्रालय के प्रस्ताव को प्रधानमंत्री ने बेहतर करार दिया है। उम्मीद है कि जल्दी ही मैटरनिटी बेनिफिट ऐक्ट में संशोधन कर इस प्रस्ताव को अमली जामा पहनाया जाएगा। कामकाजी गर्भवती महिलाओं की सुविधाएं बढ़ाने के लिए फैक्टरी ऐक्ट और कंपनी मामलों से संबंधित कानून में संशोधन करने का अनुरोध भी किया गया है। दरअसल अनेक निजी कंपनियों में ′मातृत्व अवकाश′ को एक गैरजरूरी जिम्मेदारी के रूप में देखा जाता है। इसके चलते महिला कर्मचारियों पर दबाव रहता है कि वे या तो नौकरी छोड़ दें या अपने निजी हितों को त्यागें।
गैर लाभकारी संगठन कम्युनिटी बिजनेस के लैंगिक विविधता पैमाने पर किए गए अध्ययन की मानें, तो एशिया में भी ऐसी स्थिति बन रही है। मातृत्व अवकाश को लेकर पूरे देश में एक जैसी नियमावली न होने का खामियाजा तो महिला कर्मचारी भुगत ही रही हैं, बीते वर्षों में उन्हें मातृत्व अवकाश के लिए न्यायालय का दरवाजा भी खटखटाना पड़ा है। बीते दिनों दिल्ली उच्च न्यायालय ने मातृत्व अवकाश के संबंध में स्पष्ट कर दिया कि सेरोगेट माध्यम से मां बनने वाली सरकारी सेवा में कार्यरत महिला भी मातृत्व अवकाश की हकदार है।
विगत जनवरी में केरल उच्च न्यायालय ने अपने एक महत्वपूर्ण निर्णय में कहा कि सेरोगेट मदर (किराये की कोख) और जैविक मां के बीच किसी तरह का भेदभाव नहीं किया जा सकता। उल्लेखनीय है कि केरल पशुधन विकास बोर्ड की उप प्रबंधक को बोर्ड ने यह कहते हुए मातृत्व अवकाश देने से इन्कार कर दिया था कि वह बच्चे की जैविक मां नहीं है। इससे पूर्व मार्च, 2013 में चेन्नई उच्च न्यायालय ने भी इसी तरह का निर्णय दिया था।
प्रश्न यह कि सिर्फ जैविक मां को ही मातृत्व अवकाश का अधिकार क्यों हो। उन मांओं को इसका लाभ क्यों न मिले, जो खुद बच्चे पैदा नहीं कर सकतीं और सेरोगेसी के माध्यम से मातृत्व का सुख प्राप्त करती हैं? आज भी हमारी सोच यह है कि मां वही कहलाई जा सकती है, जिसने शिशु को अपनी कोख से जन्म दिया है। यह अधूरी परिभाषा है। शिशु को जन्म देने के बाद उसका पालन-पोषण सतत परिश्रम का कार्य है। लिहाजा उसकी मां को, चाहे वह सेरोगेट मदर ही क्यों न हो, मातृत्व अवकाश से वंचित करना शिशु के मौलिक अधिकारों का भी हनन होगा।
मैटरनिटी बेनिफिट ऐक्ट में संशोधन करने से पूर्व यह आवश्यक है कि इसकी व्यापक समीक्षा की जाए। बदलते दौर में संयुक्त परिवारों में बिखराव की वजह से नवजात शिशुओं को संभालने के लिए माताओं को अधिक समय चाहिए। इसके साथ ही बीते दशकों में महिलाओं ने परिवार के आर्थिक उत्तरदायित्वों को साझा करने की जिम्मेदारी उठाई है। लिहाजा बच्चों के लालन-पालन में पिता की भूमिका बढ़ी है। विगत अप्रैल में ब्रिटेन में मातृत्व अवकाश की नई व्यवस्था लागू हुई, जिसमें माता-पिता छुट्टियां आपस में बांट सकते हैं। इसे हमारे यहां भी लागू किया जा सकता है। इसके अलावा हमारे यहां मातृत्व अवकाश के संदर्भ में सरकारी और निजी उपक्रमों में एक जैसे नियम की जरूरत है, ताकि महिला कर्मचारियों पर दबाव न बन सके।
कई निजी कंपनियों में ′मातृत्व अवकाश′ को एक गैरजरूरी जिम्मेदारी के रूप में देखा जाता है।
ऋतु सारस्वत
परिदृश्य
1 Comments
Sab galat hai,kuch nahi hoga
ReplyDelete