चुनाव आयोग ने संसद और राज्य विधानसभाओं से कहा है कि ऐसी व्यवस्था बनाई जाए ताकि अदालत द्वारा किसी जनप्रतिनिधि को दोषी करार दिए जाने की स्थिति में उसे बिना भेदभाव के और तत्काल अयोग्य ठहराने की अधिसूचना जारी की जाए। सुप्रीम कोर्ट ने 10 जुलाई, 2013 के अपने फैसले में जन प्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 8 की उपधारा 4 को रद्द कर दिया था। इस प्रावधान के तहत सांसदों, विधायकों और विधान परिषद सदस्यों को दोषी करार दिए जाने की स्थिति में ऊपरी अदालत में अपील के आधार पर अयोग्य ठहराए जाने से सुरक्षा मिल जाती थी।
देश की सर्वोच्च अदालत के आदेश के बाद से भ्रष्टाचार तथा कुछ और मामलों में दोषी करार दिए जाने के साथ ही किसी भी सदन के सदस्य की सदस्यता चली जाती है। लोकसभा और राज्यसभा सचिवालय तथा विधानसभा के सचिवालयों को जारी निर्देश में आयोग ने कहा है कि कुछ मामलों में सदन के सचिवालय द्वारा अधिसूचना जारी करने में देरी हुई है।
कोर्ट ने कहा कि देरी के कारण ऐसी स्थिति बनी जहां अयोग्य करार दिया गया सदस्य भी सदन का सदस्य बना रहा जो संविधान के अनुच्छेद 103 तथा सुप्रीम कोर्ट की ओर से तय कानून का उल्लंघन है। चुनाव आयोग ने संसद और राज्य विधानसभाओं से कहा है कि दोषी ठहराए जाने पर बिना किसी भेदभाव के अयोग्य ठहराने से जुड़े कानून को तत्काल क्रियान्वित किया जाए।
आयोग ने कहा कि राज्य के मुख्य सचिव को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि लोकसभा, राज्यसभा, विधानसभा एवं विधान परिषद के सचिवालयों को किसी सदस्य को अदालत द्वारा दोषी ठहराए जाने की सूचना तत्काल दी जाए। उसने कहा कि दोषसिद्धि के बारे में सूचना तथा फिर इसके बाद अयोग्य ठहराए जाने की अधिसूचना में से हर एक में सात हफ्ते से अधिक का समय नहीं लगना चाहिए।
न्यायालय के आदेश के बाद सबसे पहले 21 अक्तूबर, 2013 को कांग्रेस के राज्यसभा सदस्य रशीद मसूद को अयोग्य ठहराया गया। मसूद को इससे एक महीने पहले भ्रष्टाचार के एक मामले में अदालत ने दोषी करार दिया था। इसके बाद चारा घोटाले में दोषी करार दिए जाने के बाद 22 अक्तूबर, 2013 को राजद प्रमुख लालू प्रसाद और जदयू नेता जगदीश शर्मा को लोकसभा की सदस्यता से अयोग्य ठहराया गया।
कोर्ट के आदेश की पृष्ठभूमि में तत्कालीन संप्रग सरकार संसद में एक विधेयक लाई थी लेकिन विपक्ष के साथ मतभेद के बाद इसे पारित नहीं कराया जा सका। इस विधेयक की तर्ज पर कैबिनेट ने सांसदों को सुरक्षित करने के लिए 24 सितंबर, 2013 को एक अध्यादेश को मंजूरी दी। कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी के विरोध के बाद बीते दो अक्तूबर, 2013 को कैबिनेट ने इस कदम को वापस ले लिया। राहुल ने इस अध्यादेश को बकवास करार देते हुए कहा था कि इसे फाड़कर फेंक देना चाहिए।
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