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एक छत के नीचे 'प्राइमरी का मास्टर' से जुड़ी शिक्षा विभाग की समस्त सूचनाएं एक साथ

मन की बात (Man Ki Baat) : शुरुआती दिनों के स्कूली अनुभवों को यादगार बनाने के लिए बहुत से साथियों ने काफी मदद करी। वे हमको बार-बार समझाते थे। भाई लोगों हमें बच्चों को पढ़ाना बाद में है। पहले अपन यह तो सीख लें कि बच्चे सीखते कैसे हैं ? इस एक सवाल के कारण…………………

मन की बात : शुरुआती दिनों के स्कूली अनुभवों को यादगार बनाने के लिए बहुत से साथियों ने काफी मदद करी। वे हमको बार-बार समझाते थे। भाई लोगों हमें बच्चों को पढ़ाना बाद में है। पहले अपन यह तो सीख लें कि बच्चे सीखते कैसे हैं ? इस एक सवाल के कारण…………………

पहली व दूसरी कक्षा एक साथ पढ़ने के लिए बैठ रही थी। पहली कक्षा पर ध्यान दो तो दूसरी के बच्चों पर पर्याप्त ध्यान देना संभव नहीं होता था। वे पहली के बच्चों का विभिन्न गतिविधियों के माध्यम से ध्यान आकर्षित करते थे। इसलिए सोचा कि पहली कक्षा के बच्चों को अलग से बैठाकर पढाया जाय। इससे उनके साथ बात करना आसान हो गया। लेकिन बड़े बच्चे छोटे बच्चों को अलग बैठाने पर ईष्या का अनुभव कर रहे थे। उनको लग रहा था कि जो समय उनको मिलना चाहिए, वह छोटे बच्चों को मिल रहा है। वे अपना रोष छोटे बच्चों की कक्षा को डिस्टर्ब करके निकाल रहे थे। इस पर काफी गुस्सा आ रहा था। ऊपर से बड़े बच्चों को समझना कठिन लग रहा था।

उस समय के दिनों को याद करके लगता है कि बच्चों को कंट्रोल करने की सारी कोशिशों के कारण ही ऐसी गड़बड़ हो रही थी। हमको कंट्रोल किया गया था। इसलिए हम उनको कंट्रोल कर रहे थे। भाषा का मुख्य काम क्लास में कंट्रोल करने के लिए निर्देश देना था। शुरुआती अनुभव तो ऐस ही थे। इसलिए कभी-कभी हम कहते थे कि बच्चों को कंट्रोल करना काफी कठिन है। इसके अलावा बच्चों की आपसी मारपीट तो कमाल की होती थी। 

सारे बच्चे तो नहीं लेकिन कुछ बच्चे आपस में मारपीट करते थे। सबसे ज्यादा तकलीफ इस बात की होती थी कि बड़े बच्चे छोटे बच्चों को मारते थे। हमारे ऊपर भी भयमुक्त वातावरण बनाए रखने का जुनून सवार था। मंजिल पता थी कि भयमुक्त वातावरण बनाना है। हर बच्चे को अपनी बात रखने का मौका देना है। उनकी रुचि व इच्छा का सम्मान करना है। उनको किसी भी तरीके से डराना नहीं है। उनको किसी तरह का प्रलोभन नहीं देना है। इस तरह के तमाम सुझाव, जिसका हमें स्कूल विजिट के दौरान ध्यान रखना पड़ता था।

शुरुआती दिनों के स्कूली अनुभवों को यादगार बनाने के लिए बहुत से साथियों ने काफी मदद करी। वे हमको बार-बार समझाते थे। भाई लोगों हमें बच्चों को पढ़ाना बाद में है। पहले अपन यह तो सीख लें कि बच्चे सीखते कैसे हैं ? इस एक सवाल के कारण कक्षा कक्ष में हमारा नजरिया बिल्कुल अलग होता था कि हम सिखाने नहीं सीखने आए हैं। इसी कारण से आज सीखने-सीखाने की प्रक्रिया समझ में आती है। कक्षा कक्ष का माहौल कैसा हो, हमारी भाषा कैसी हो, कंटेंट की तैयारी कैसी हो, उसको बच्चों तक पहुंचाने की प्रक्रिया में उनके मनोविज्ञान की अनदेखी न हो। इन बातों का ख्याल अक्सर बना रहता है। 

स्कूल जाते बच्चे

स्कूल के बच्चों की

कोरी उत्तर पुस्तिकाएं

जो पूरी तरह कोरी नहीं है

क्योंकि उनमें लिखे हुएं हैं 

प्रश्नपत्र में छपे हुए सवाल

बिना किसी फेरबदल के….....

यथास्थिति को पूरा 

सम्मान देते हुए

जो बयान करता है 

शिक्षा में बदलाव की

तमाम कोशिशों के

बावजूद बिगड़ती स्थिति की…........
       ~भाई बृजेश सिंह


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  1. मन की बात (Man Ki Baat) : शुरुआती दिनों के स्कूली अनुभवों को यादगार बनाने के लिए बहुत से साथियों ने काफी मदद करी। वे हमको बार-बार समझाते थे। भाई लोगों हमें बच्चों को पढ़ाना बाद में है। पहले अपन यह तो सीख लें कि बच्चे सीखते कैसे हैं ? इस एक सवाल के कारण…………………
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