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एक छत के नीचे 'प्राइमरी का मास्टर' से जुड़ी शिक्षा विभाग की समस्त सूचनाएं एक साथ

मंथन : हाईकोर्ट ने कहा था सरकारी स्कूलों में पढ़ें अफसरों के बच्चे, आदेश के एक महीने बाद भी न्याय विभाग कर रहा विचार-विमर्श सरकारी स्कूल से 'बच्चों' को बचाने की जुगत में जुटे

मंथन : हाई कोर्ट ने कहा था सरकारी स्कूलों में पढ़ें अफसरों के बच्चे, आदेश के एक महीने बाद भी न्याय विभाग कर रहा विचार-विमर्श सरकारी स्कूल से 'बच्चों' को बचाने की जुगत में जुटे

√1.40 लाख प्राइमरी स्कूल हैं प्रदेश में

√2.70 लाख पद खाली

√1.72 लाख पद की शिक्षामित्रों की पद फंसी

लखनऊ : इलाहाबाद हाई कोर्ट ने प्रदेश सरकार से कहा था कि वह छह महीने में पॉलिसी तय करे कि सरकारी खजानों से वेतन लेने वालों के बच्चे सरकारी स्कूलों में अनिवार्य रूप से पढ़ें। आदेश के बाद हुई समर्थन और विरोध के हलचल के बाद फिलहाल मामला जस का तस है। आदेश आए करीब एक महीने हो चुके हैं लेकिन मामला अभी 'मंथन' पर ही अटका है। 

सरकारी स्कूलों में सरकारी कर्मचारियों व अफसरों के बच्चों को अनिवार्य रूप से पढ़ाने के आदेश के अमली जामा पहनाए जाने के आसार फिलहाल कमजोर ही लग रहे हैं। आदेश आने के बाद विधानसभा में चर्चा हुई और मंत्री ने सैद्धांतिक सहमति जताते हुए लोगों से अपील करने का आश्वासन दिया। दूसरी ओर अफसरों ने आदेश के खिलाफ कानूनी रास्ते तलाशने शुरू कर दिए। फिलहाल मामला ठंडे बस्ते में हैं। 

सूत्रों की मानें तो आदेश का परीक्षण कर बेसिक शिक्षा विभाग ने प्रस्ताव न्याय विभाग को बढ़ा दिया है। मुश्किल यह है कि इस आदेश को अव्यवहारिक बताते हुए इसे पूरी तरह लागू न करने के पक्ष में अफसरों का बड़ा तबका है। 

दूसरी ओर सरकार की मुश्किल यह है कि अगर आदेश के खिलाफ वह विशेष अपील करती है तो सवाल उठेंगे कि वह अपने स्कूलों को सुधारना नहीं चाहती। इसलिए फिलहाल रास्ता हाई कोर्ट से आदेश स्टे कराने का तलाशा जा रहा है। हालांकि मुख्य सचिव आलोक रंजन सभी पहलुओं पर विचार करने की बात कर रहे हैं। 

योग्यता तक तय नहीं तो कैसे पढ़ाएं: नाम न छापने की शर्त पर एक

सुझावों पर अमल नहीं :-

प्राइमरी स्कूलों की पढ़ाई सुधारने को लेकर गंभीरता न केंद्र ने दिखाई है और न ही प्रदेश ने। राष्ट्रीय शैक्षिक योजना एवं प्रशासन विश्वविद्यालय (न्यूपा) के कुलपति प्रो. आर गोविंदा ने सुझाव दिया था कि स्कूलों की निगरानी के लिए एक स्वतंत्र और ऑटोनॉमस विभाग या आयोग बनाया जाए। प्राइमरी स्कूलों में बच्चे आएं, इसके लिए जरूरी है कि साल में 220 दिन और रोजाना निर्धारित समयावधि तक स्कूल खुलें। शासन का काम नीति निर्धारण तक ही हो। दूसरी ओर प्राइमरी स्कूलों में शिक्षकों के बायोमेट्रिक अटेंडेंस की कवायद भी प्रदेश सरकार ने ठंडे बस्ते में डाल दिया। इस पर बेसिक शिक्षा मंत्री रामगोविंद चौधरी कहते हैं कि नियम से नहीं बल्कि आत्मचिंतन ही शिक्षकों को स्कूल जाने के लिए प्रेरित कर सकता है।

       खबर साभार : नवभारतटाइम्स

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  1. मंथन : हाईकोर्ट ने कहा था सरकारी स्कूलों में पढ़ें अफसरों के बच्चे, आदेश के एक महीने बाद भी न्याय विभाग कर रहा विचार-विमर्श सरकारी स्कूल से 'बच्चों' को बचाने की जुगत में जुटे
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