सरकार ने शिक्षक बनाकर खुशियों का तोहफा दिया तो कोर्ट ने लगाया विराम : बिना पद और बिना निर्धारित योग्यता के किया गया समायोजन बना शिक्षामित्रों की नियुक्ति रद्द होने की बड़ी वजह
सरकार ने अध्यापक नियुक्ति के नए मानक तय किए, जो असंवैधानिक है। शिक्षामित्रों की नियुक्ति व समायोजन में आरक्षण नियमों का पालन नहीं किया गया। - हाई कोर्ट
इलाहाबाद : सुप्रीम कोर्ट ने शिक्षा मित्रों के समायोजन को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई करते हुए सिर्फ टीईटी को ही सहायक शिक्षक के रूप में तैनाती का आधार माना था। शिक्षा मित्र टीईटी पास नहीं हैं, इसलिए कोर्ट ने अपने अंतरिम आदेश में उनकी नियुक्ति पर रोक लगा दी थी। कोर्ट का यह अंतरिम आदेश 10 सप्ताह के लिए था। इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाई कोर्ट को शिक्षामित्रों के समायोजन से जुड़ी सभी याचिकाओं को विशेष पीठ गठित कर एक साथ सुनने और दो माह के अंदर फैसला करने का अनुरोध किया था। जस्टिस दीपक मिश्रा और जस्टिस यूयू ललित की खंडपीठ ने टीईटी पास न होने के आधार पर ही शिक्षामित्रों के खिलाफ अंतरिम आदेश दिया था। अब इस मामले की सुप्रीम कोर्ट में 2 नवंबर को सुनवाई होनी है। इसमें दोनों पक्षों के साथ प्रदेश सरकार भी अपना पक्ष रखेगी। हाई कोर्ट ने शनिवार को फैसला देते कहा कि, शिक्षामित्रों का समायोजन किसी भी रिक्त पद के सापेक्ष नहीं हुआ। इसलिए उनकी नियुक्ति रद की जाती है। कोर्ट ने फैसला देते हुए यह भी कहा कि अब तक नियुक्त शिक्षामित्रों की नियुक्ति रद की जाती है। आगे शिक्षामित्रों की नियुक्ति के लिए एक कमिटी बनाई जाए। कमिटी इस पर विचार करे और अगर वो मानकों पर खरे उतरते हैं तो उनकी नियुक्ति पर विचार किया जाए।
हाई कोर्ट ने कायम रखा सुप्रीम कोर्ट का नजरिया |
इलाहाबाद : इलाहाबाद हाई कोर्ट ने शिक्षामित्रों का बतौर शिक्षक समायोजन रद करते हुए कड़ी टिप्पणियां की हैं। कोर्ट ने कहा है कि उ.प्र. बेसिक शिक्षा (अध्यापक सेवा) नियमावली 1981 में राज्य सरकार ने अनिवार्य शिक्षा कानून 2009 के उपबंधों के विपरीत संशोधन किए। सरकार ने अध्यापक नियुक्ति के नए मानक तय किए, जो असंवैधानिक है। शिक्षामित्रों की नियुक्ति व समायोजन में आरक्षण नियमों का पालन नहीं किया गया।
कोर्ट ने कहा कि शिक्षामित्र अध्यापक नियुक्ति की न्यूनतम योग्यता नहीं रखते। सरकार ने शिक्षामित्रों की नियुक्ति व समायोजन के लिए अध्यापक की परिभाषा ही बदल डाली। केन्द्र व एनसीटीई द्वारा निर्धारित मानकों के विपरीत राज्य सरकार ने बिना अधिकार सहायक अध्यापकों की नियुक्ति के अतिरिक्त स्रोत बनाए।
1981 की सेवा नियमावली जूनियर बेसिक एवं सीनियर बेसिक स्कूलों के लिए मानक निर्धारित करती है। हाई कोर्ट ने कहा कि अवैध नियुक्ति और अनियमित नियुक्ति में बड़ा फर्क है। अनियमित को कोर्ट नियमित कर सकती है, लेकिन अवैध नियुक्ति अवैध है और वह नियमित नहीं हो सकती। कोर्ट ने कहा कि शिक्षामित्रों की नियुक्ति सरकार ने बिना पद और योग्यता के कर दी थी, इसलिए यह अवैध हैं और कोर्ट इसे वैध नहीं कर सकती।
सपा के वोट बैंक का सवाल
हाई कोर्ट का फैसला सरकार की साख पर पड़ने के साथ ही यह सपा के वोट बैंक के लिए भी बड़ा सवाल है। लोकसभा चुनाव में भी सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव ने इसे वोट बैंक से जोड़ते हुए चेताया था कि हम ही आपको शिक्षक बनाएंगे। ऐसे में उम्मीद है कि सरकार भी इनके लिए कोई न कोई रास्ता निकलाने की कोशिश करेगी।
पढ़ाई पर पड़ेगा खराब असर
कोर्ट के इस फैसले से स्कूलों की पढ़ाई पर विपरीत असर पड़ेगा। शिक्षक बनने वालों को फिर शिक्षा मित्र बनाया जाता है या हटाया जाता है, तो दोनों ही स्थितियों में पढ़ाई प्रभावित होगी। प्रदेश में करीब 3.5 लाख शिक्षक हैं। इसमें से 1.72 लाख शिक्षा मित्रों के कम हो जाने से छात्र-शिक्षक अनुपात काफी कम हो जाएगा।
पक्ष में फैसला आने के बाद टीईटी शिक्षकों ने हाई कोर्ट के सामने नाच कर की खुशी का इजहार किया।
जब से खबर मिली है, मानसिक संतुलन बिगड़ गया है। पूरा परिवार इसी कमाई पर ही निर्भर है। अगर नौकरी न रहे तो हम खाएंगे क्या। मेरे बीवी, बच्चे, पिता सभी का जीवन नौकरी के दम पर है।
-सत्य कुमार, प्राथमिक विद्यालय 32 पीएसी
हाई कोर्ट के ऐतिहासिक फैसले का सम्मान करते हैं। प्रदेश सरकार ने शिक्षामित्रों के साथ छलावा किया है। हमें शिक्षामित्रों के साथ सहानुभूति है। इससे सरकार की सोच की कलई खुली है।
-शक्त्ति पाठक, प्रदेश प्रवक्ता, टीईटी संघर्ष मोर्चा
मेेरे माता-पिता भी नहीं हैं। मैं निशक्त हूं, इसलिए पढ़ाने के अलावा दूसरा कोई काम भी नहीं कर सकता। ऐसे में अगर नौकरी न रही तो मेरे बच्चे क्या खाएंगे ये अंदाजा भी नहीं है मुझे।
-उवैश अहमद सिद्दीकि प्राथमिक वि बरौलिया कला-2
मैं शादी से पहले से ही शिक्षा मित्र के तौर पर काम कर रही थी। बड़ी मुश्किल से तो समायोजन हुआ था। मेरा बेटा सीएमएस में पढ़ रहा है। अगर नौकरी नहीं रही तो बच्चे को मैं पढ़ा भी नहीं पाउंगी।
-रिचा शुक्ला प्राथमिक विद्यालय मड़ियांव
टीईटी शिक्षकों के पक्ष में आया हाई कोर्ट का फैसला पूरी तरह से न्याय संगत है। शिक्षा मित्र सिर्फ संविदा कर्मी हैं। उन्हें शिक्षक बनने का कोई हक नहीं है।
मनोज कुमार सिंह, टीईटी संघर्ष मोर्चा, वाराणसी
अगर नौकरी न रही तो हमारा जीवन अस्त व्यस्त हो जाएगा। आधी जिंदगी हमने समायोजन के लिए लड़ने में निकाल दी। अब अगर समायोजन के बाद निकाल दिया गया तो आधी जिंदगी नौकरी पाने में लग जाएंगे।
-विकास अनंत- प्राथमिक विद्यालय बेहसा-1
2005 से मैं शिक्षा मित्र के तौर पर काम कर रही हूं। मेरे पति वकालत करते हैं लेकिन घर के ज्यादातर खर्चे मेरी सैलरी पर ही निर्भर हैं। हमें नौकरी से निकाल दिया गया तो परिवारीजनों को खाने के भी लाले पड़ जाएंगे।
रीना देवी,मड़ियांव-1 प्राथमिक विद्यालय
शिक्षामित्र और शिक्षक हाई कोर्ट के फैसले से निराश न हों। कोर्ट के फैसले का सम्मान करते हुए सीएम और शिक्षामंत्री से बात हो चुकी है। जरूरत पड़ने पर सरकार सुप्रीम कोर्ट में अपील करेगी। सरकार सबके साथ है।
योगेश प्रताप सिंह, बेसिक शिक्षा राज्यमंत्री
केद्रीय मानव संसाधन मंत्रालय के वे निर्देश शिक्षा मित्रों के लिए ढाल का काम कर सकते हैं, जिसमें यह कहा गया था कि राज्य सरकार अपने अनुसार टीईटी में छूट का प्रावधान करे। इसी आधार पर प्रदेश सरकार ने टीईटी से छूट का प्रावधान किया।
पहले चरण में 58 हजार शिक्षा मित्रों को पिछले साल शिक्षक बनाया जा चुका है। इस साल दूसरे चरण के 92 हजार शिक्षा मित्रों के समायोजन की प्रक्रिया शुरू हुई। अब तक 1,37,000 शिक्षा मित्र शिक्षक बन चुके हैं। ज्यादातर को वेतन भी मिलना शुरू हो गया है।
प्रशिक्षण सबसे बड़ी रुकावट थी। शिक्षा मित्रों में ज्यादातर के पास बीएड या बीटीसी की डिग्री भी नहीं थी। रास्ता निकाला गया कि इन्हें ओपन विश्वविद्यालय से प्रशिक्षण दिला दिया जाए। 2014 में सरकार ने प्रशिक्षण के आधार पर चरणबद्ध तरीके से शिक्षक बनाने का शासनादेश जारी कर दिया।
पक्ष विपक्ष में कोर्ट में दी गयी दलीलें
शिक्षामित्रों की तरफ से वरिष्ठ अधिवक्ता आर.के.ओझा, एच.आर.मिश्र ने बहस की। याची की तरफ से वरिष्ठ अधिवक्ता अशोक खरे ने बहस की। उन्होंने कहा कि, शिक्षामित्रों की नियुक्ति मनमाने तौर पर बिना आरक्षण कानून का पालन किए की गई है। ऐसे में इनका समायोजन संविधान के अनुच्छेद 14 व 16 के विपरीत है।
नैशनल काउंसिल फार टीचर्स एजुकेशन, एनसीटीई के अधिवक्ता रिजवान अली अख्तर का कहना था कि शिक्षामित्रों को प्रशिक्षण देने का अनुमोदन विधि सम्मत है। 23 अगस्त 2010 की एनसीटीई की अधिसूचना सही है। रेग्यूलेशन बनाने का अधिकार केंद्र सरकार को है।
1.37 लाख को नियुक्ति प्रशिक्षण पर सवाल
शिक्षा मित्र बनाम शिक्षक
हाई कोर्ट के फैसले के बाद शिक्षकों के बीच गुटबाजी शुरू हो जाएगी। शिक्षकों के कई गुट बन जाएंगे। एक ओर शिक्षा मित्र हैं जिन्होंने टीईटी पास नहीं किया। बीटीसी के समकक्ष एलीमेंट्री एजुकेशन का जो कोर्स भी सरकार ने बाद में करवाया है, उसके बाद वे 72 हजार टीईटी शिक्षकों से सीनियर हो गए। यदि आरक्षण या प्रमोशन की बात आती है, तो शिक्षामित्र आगे हो जाएंगे। जो शिक्षक दूसरे जिलों से तबादला होकर आए हैं, वे शिक्षा मित्रों से जूनियर हो जाएंगे। इसका असर ट्रांसफर और प्रमोशन पर पड़ेगा। इन्हीं वजहों से शिक्षकों ने शिक्षा मित्रों की नियुक्ति के खिलाफ याचिका दायर की थी। नए भर्ती होने वाले 15 हजार बीटीसी शिक्षकों से भी शिक्षा मित्र सीनियर हो गए थे। जूनियर में शिक्षा मित्रों की तरह अनुदेशक रखे गए हैं। अब शिक्षा मित्रों की नियुक्ति अवैध कर दी गई है, तो सबको सीनियरटी का लाभ मिलेगा।
शुरुआत से ही लटकती रही तलवार
लखनऊ : शिक्षा का अधिकार अधिनियम लागू होने के बाद से ही शिक्षा मित्रों पर तलवार लटकती रही। आरटीई में पूर्णकालिक शिक्षक का प्रावधान है। पैरा टीचर्स का प्रावधान न होने की वजह से शिक्षा मित्रों को हटाए जाने की बात भी उठी थी। शिक्षकों की कमी को देखते हुए तय हुआ कि इन्हें ही प्रशिक्षण देकर शिक्षक बना दिया जाए। पांच साल बाद अब शिक्षा मित्र नियमित हुए तो हाईकोर्ट ने ही उसे रद करके उन्हें बड़ा झटका दे दिया है।
प्रदेश में कुल 1,72,000 शिक्षा मित्र हैं। आरटीई के मानकों के मुताबिक प्रदेश में शिक्षकों की जरूरत थी। सरकार की दिक्कत थी कि इतनी संख्या में नई भर्तियां मुश्किल है। वहीं सरकार शिक्षा मित्रों को नौकरी से हटाकर उनका विरोध भी नहीं लेना चाहती थी।
सरकार की ओर से कहा गया कि प्रशिक्षित शिक्षकों की कमी के चलते सर्वशिक्षा अभियान के तहत बच्चों को शिक्षा देने के लिए सरकार ने 16 वर्ष से कार्यरत शिक्षामित्रों का समायोजन किया है। अपर महाधिवक्ता सी.बी.यादव ने कहा कि शिक्षामित्र भी शिक्षक हैं और इनका चयन ग्राम शिक्षा समिति द्वारा किया गया है। अध्यापकों की कमी के चलते सरकार ने नियमानुसार समायोजन करने का निर्णय लिया है।
राज्य सरकार का जवाब 1999 में नियुक्त हुए थे शिक्षामित्र
केन्द्र सरकार ने संसद से कानून पारित कर 6-14 वर्ष तक के बच्चों को पढ़ाना अनिवार्य कर दिया और अध्यापक नियुक्ति की न्यूनतम योग्यता एवं मानक तय किए। एनसीटीई ने अधिसूचना जारी कर पहले से कार्यरत ऐसे अध्यापकों को प्रशिक्षण प्राप्त करने या न्यूनतम योग्यता अर्जित करने के लिए पांच वर्ष की अवधि निर्धारित कर यह छूट केवल एक बार के लिए ही दी गई थी। 1999 से शिक्षामित्रों की नियुक्ति शुरू की गई थी। इन्हें 3500 रुपये के निश्चित मानदेय पर संविदा पर नियुक्त किया गया।
सरकार ने अध्यापक नियुक्ति के नए मानक तय किए, जो असंवैधानिक है। शिक्षामित्रों की नियुक्ति व समायोजन में आरक्षण नियमों का पालन नहीं किया गया।
- हाई कोर्ट
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