गलती सरकार की भुगतें शिक्षामित्र : सरकार की ढीली नीतियां और गलत फैसलों के कारण ही आज प्रशिक्षु शिक्षक और शिक्षामित्र एक-दूसरे के सामने हो गये हैंवलामबंद
लखनऊ : राज्य सरकार ने गलत नीतियों को अपनाते हुए शिक्षामित्रों को सहायक अध्यापक बना दिया और आज की तारीख में शिक्षामित्र खाली हाथ हैं। सरकार की ढीली नीतियां और गलत फैसलों के कारण ही आज प्रशिक्षु शिक्षक और शिक्षामित्र एक-दूसरे के सामने लामबंद हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने जब 72,825 प्रशिक्षु शिक्षकों की भर्ती की सुनवाई करते हुए बिना टीईटी किए शिक्षामित्रों की भर्ती पर रोक लगाई तो यह अचानक नहीं था। टीईटी अभ्यर्थियों ने शिक्षामित्रों के खिलाफ लामबंद होकर याचिका दायर की। प्रशिक्षु शिक्षकों की नजर शिक्षामित्रों को समायोजित करने वाले लगभग पौने दो लाख पदों पर थीं। प्रशिक्षु शिक्षक भर्ती में लगभग ढाई लाख अभ्यर्थियों ने आवेदन किया था। जबकि भर्ती केवल 72,825 प्रशिक्षु शिक्षकों की ही होनी थी। सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट को तयशुदा समय में शिक्षामित्रों के मामले की सुनवाई के आदेश दिए। नवम्बर में इस मामले की सुप्रीम कोर्ट समीक्षा करेगा।
वहीं, इसके बाद शिक्षामित्रों की अध्यापक पात्रता परीक्षा 2011 को रद्द करने की मांग जोर पकड़ रही है। टीईटी 2011 का रिजल्ट विवादों के घेरे में है। इसके रिजल्ट में घोटाले के आरोप के चलते ही तत्कालीन माध्यमिक शिक्षा विभाग के निदेशक संजय मोहन को जेल भेजा गया था लेकिन सरकार ने टीईटी 2011 को रद्द नहीं किया। शिक्षामित्र इसके रिजल्ट को लेकर हाईकोर्ट में याचिका दायर करने की तैयारी कर रहे थे।
सरकार ने की गलतबयानी : दरअसल, एनसीटीई ने शिक्षा का अधिकार कानून के तहत पैराटीचर को प्रशिक्षित करने की अनिवार्यता का नियम बनाया है। लेकिन स्थायी या अस्थायी नियुक्ति पर एनसीटीई ने कुछ नहीं कहा है। सपा सरकार ने रेवड़ी बांटने के अंदाज में नियमों को दरकिनार कर शिक्षामित्रों को सहायक अध्यापक बनाया। यहीं नहीं, सरकार ने यह तथ्य भी प्रचारित किया कि एनसीटीई ने शिक्षामित्रों को बिना टीईटी सहायक अध्यापक बनाने की अनुमति दी है। जबकि ऐसा नहीं था।
खबर साभार : हिन्दुस्तान
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