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एक छत के नीचे 'प्राइमरी का मास्टर' से जुड़ी शिक्षा विभाग की समस्त सूचनाएं एक साथ

गलती सरकार की घर तबाह हुए बेरोजगार के : हाईकोर्ट की फुलबेंच ने माना की NCTE द्वारा टीईटी की अनिवार्यता सही

इलाहाबाद। शिक्षामित्रों को सहायक अध्यापक बनाने के लिए प्रदेश सरकार ने सभी नियम-कानूनों को ताक पर रख दिया। अपने अधिकारों की सीमा से बाहर जाकर सरकार ने उत्तर प्रदेश बेसिक (शिक्षक) सेवा नियमावली 1981 में संशोधन करते हुए नियम 14 (6) जोड़ा जिसमें व्यवस्था की गई कि शिक्षामित्रों को भी सहायक अध्यापक बनाया जा सकता है। नियमावली में संशोधन के पश्चात शिक्षामित्रों को सहायक अध्यापक के पद पर नियमित रूप से समायोजित करने के लिए  19 जून 2014 को शासनादेश जारी किया गया। प्रदेश सरकार ने सहायक अध्यापकों की नियुक्ति के लिए निर्धारित न्यूनतम योग्यता के मानकों को दरकिनार करते हुए नियम शिथिल कर दिए। शिक्षामित्रों को टीईटी की अनिवार्यता से छूट दे दी, जबकि ऐसा करने का अधिकार सिर्फ केंद्र सरकार को है। तीन जजों की पीठ ने इस पर टिप्पणी करते हुए कहा कि सरकार ने शिक्षामित्रों को सहायक अध्यापक बनाने के लिए मनमाने फैसले लिए। अपनी विधायी सीमा का उल्लंघन करते हुए उसने ऐसे लोगों को नियुक्ति दी, जो शिक्षक होने की अर्हता ही नहीं रखते हैं। 


कोर्ट ने कहा कि टीईटी का उद्देश्य यह तय करता है कि शिक्षक उस क्षेत्र की योग्यता रखता है, जिसमें वह जा रहा है। हाईकोर्ट की फुलबेंच ने भी एनसीटीई द्वारा निर्धारित टीईटी की अनिवार्यता को सही माना है। प्रदेश सरकार की जानकारी में यह फैसला था इसके बावजूद उसने बिना अधिकार नियमों को शिथिल करते हुए शिक्षामित्रों को टीईटी से छूट दी। कोर्ट ने शिक्षामित्रों को दूरस्थ शिक्षा के माध्यम से दिए गए प्रशिक्षण को भी अवैध माना है। एनसीटीई ने 10 सितंबर 2012 को जारी अधिसूचना में सीमित समय के लिए एक वर्ग को न्यूनतम अर्हता में छूट प्रदान की थी। प्रदेश सरकार इसका लाभ नहीं ले सकती। कोर्ट ने सरकार द्वारा बेसिक शिक्षा सेवा नियमावली के संशोधन 16 क को भी असंवैधानिक और अल्ट्रावायरस करार देते हुए रद्द कर दिया है। शिक्षा मित्रों को सहायक अध्यापक पद पर समायोजित करने के खिलाफ दाखिल याचिकाओं पर वरिष्ठ अधिवक्ता अशोक खरे, अरविंद कुमार श्रीवास्तव, सीमांत सिंह, अशोक दुबे, आनंद नंद के अलावा शिक्षामित्रों की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता आरके ओझा, अपर महाधिवक्ता सीबी यादव, एनसीटीई के वकील रिजवान अहमद आदि ने बहस की। 


याची पक्ष ने मुख्य आधार लिया कि शिक्षामित्रों का समायोजन बिना किसी प्रक्रिया को अपनाए मनमाने तरीके से किया गया है, यहां तक कि आरक्षण नियमों का भी पालन नहीं हुआ, जबकि शिक्षामित्रों के पक्ष में कहा गया कि नियुक्तियां नियमानुसार की गई हैं। स्कूलों में अध्यापकों की कमी के कारण सर्वशिक्षा अभियान चलाना मुश्किल था। शिक्षामित्रों पर आया निर्णय इस दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है कि हाईकोर्ट के तीन जजों की बेंच ने शनिवार को अवकाश का दिन होने के बावजूद अदालत में बैठकर फैसला लिखाया। मुख्य न्यायमूर्ति की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय पीठ ने शुक्रवार अपराह्न तीन बजे से चार बजे तक और फिर आज सुबह दस बजे से दिन में सवा दो बजे तक निर्णय खुली अदालत में लिखाया।


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  1. गलती सरकार की घर तबाह हुए बेरोजगार के : हाईकोर्ट की फुलबेंच ने माना की NCTE द्वारा टीईटी की अनिवार्यता सही
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