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एक छत के नीचे 'प्राइमरी का मास्टर' से जुड़ी शिक्षा विभाग की समस्त सूचनाएं एक साथ

45 फीसदी से कम अंक पाने वाले आरक्षित वर्ग के लोग नहीं बन सकेंगे टीचर



इलाहाबाद. इलाहाबाद हाईकोर्ट के दो जजों की खंडपीठ ने नेशनल काउंसिल फॉर टीचर एजुकेशन (एनसीटीई) के उस प्रावधान को वैध और सही ठहराया है, जिसमें कहा गया है कि प्राथमिक विद्यालयों में सहायक अध्यापकों के 72,825 पदों को भरने के लिए आरक्षित वर्ग के उन अभ्यर्थियों को न लिया जाए, जिनके प्राप्तांक ग्रेजुएशन में 45 फीसदी से कम हैं। 

कोर्ट ने कहा है कि एनसीटीई द्वारा इस प्रकार का प्रतिबंध लगाना सही है, क्योंकि प्राथमिक विद्यालयों में अच्छे अध्यापकों कि नियुक्ति हो, इसके लिए इस प्रकार का प्रतिबंध जरूरी है। एनसीटीई ने 29 जुलाई 2011 को अधिसूचना जारी कर कहा कि प्राथमिक विद्यालयों में टीचर्स कि नियुक्ति के लिए उन्हीं को योग्‍य माना जाए, जिनके ग्रेजुएशन के प्राप्तांक यदि वह अनारक्षित वर्ग के है तो 50 फीसदी और आरक्षित वर्ग के हैं तो 45 फीसदी हो। 

 

याचिकाएं हुई खारिज
हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस डॉ. डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस यशवंत वर्मा ने आरक्षित वर्ग के अभ्यर्थियों संतोष कुमार व कई अन्य द्वारा दायर याचिकाओं को खारिज कर दी, जिसमें एनसीटीई द्वारा 45 फीसदी अंक की अनिवार्यता को यह कहते हुए चुनौती दी गई थी कि यह नियम गैरकानूनी व असंवैधानिक है। वकील अभिषेक श्रीवास्तव का कहना था कि प्रदेश सरकार ने भी एनसीटीई के इस प्रावधान के अनुसार शासनादेश जारी कर ग्रेजुएशन में 45 व 50 फीसदी अंक पाने को अनिवार्य कर दिया है, जो गलत है। 

याचिकाओं में एनसीटीई कि अधिसूचना के अलावा प्रदेश सरकार के शासनादेश को भी चुनौती दी गई थी। याचिकाकर्ता के वकील का तर्क था कि जब सहायक अध्यापक के पदों पर नियुक्ति का आधार टीईटी में प्राप्त अंक ही है तो ग्रेजुएशन में प्राप्त अंक को आधार बनाकर सहायक अध्यापक पदों पर नियुक्ति से वंचित करना गलत है।  वकील ने अपने तर्क के समर्थन में उत्तराखंड हाईकोर्ट के फैसले को भी आधार बनाया था, जिसमें एनसीटीई के इस प्रावधान को गलत बताया गया है। 

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