...तो अब कैसे चलेगा शिक्षामित्रों का परिवार : शिक्षामित्रों को 15 वर्ष की सेवा के बाद बाहर का रास्ता दिखाए जाने के बाद अब उनके लिए अपना और परिवार का खर्च चलाना कठिन हो गया
इलाहाबाद (ब्यूरो)। प्रदेश सरकार की गलत नीतियों के कारण शिक्षामित्रों का समायोजन निरस्त होने के बाद अब उनका परिवार दो राहे पर खड़ा हो गया है। प्राथमिक विद्यालयों में 2001 से सेवा दे रहे शिक्षामित्रों को 15 वर्ष की सेवा के बाद बाहर का रास्ता दिखाए जाने के बाद अब उनके लिए अपना और परिवार का खर्च चलाना कठिन हो गया है। इन शिक्षामित्रों को अब परिवार चलाने के लिए भी परेशानी झेलनी पड़ेगी।
शिक्षामित्रों के समायोजन में सरकार की चलताऊ नीतियों के कारण अब शिक्षामित्र नौकरी से पूरी तरह बाहर हो चुके हैं। अब शिक्षामित्र किस हैसियत से विद्यालयों को बंद करने की कार्रवाई कर रहे हैं, यह समझ से परे है। प्रदेश भर में लगभग 131 हजार स्नातक शिक्षामित्र और 40 हजार बारहवीं पास शिक्षामित्र प्राथमिक विद्यालयों में संविदाकर्मी के रूप में सेवा दे रहे थे। सरकार ने पहले चरण में 59 हजार शिक्षामित्रों को अगस्त 2014 में प्राथमिक विद्यालयों में समायोजित कर दिया था। मई-जुलाई 2015 में 72 हजार शिक्षामित्रों को प्राथमिक विद्यालयों में सहायक अध्यापक के रूप में समायोजित किया गया था। स्कूलों से बाहर किए जाने के बाद अब 40 वर्ष की उम्र में शिक्षामित्र कौन सी नौकरी खोजने जाएं।
खबर साभार : अमरउजाला
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