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एक छत के नीचे 'प्राइमरी का मास्टर' से जुड़ी शिक्षा विभाग की समस्त सूचनाएं एक साथ

सरकार को मिला सियासी नजरिए से फैसले लेने की प्रवृत्ति को आईना : कोई आश्चर्य नहीं कि 12 सितंबर की रात हजारों शिक्षा मित्रों के परिवार में चूल्हा तक नहीं जला

सरकार को मिला सियासी नजरिए से फैसले लेने की प्रवृत्ति को आईना : कोई आश्चर्य नहीं कि 12 सितंबर की रात हजारों शिक्षा मित्रों के परिवार में चूल्हा तक नहीं जला

इलाहाबाद (हरिशंकर मिश्र) । शिक्षा मित्रों को समायोजित करने में असफलता ने सियासी नजरिए से फैसले लेने की सरकार की प्रवृत्ति को आईना भी दिखाया है। इस पूरे फैसले में न्याय का कद ऊंचा हुआ, लेकिन पौने दो लाख युवाओं की मायूसी को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। यह युवा अपने शिक्षा मित्र होने से ही संतुष्ट थे लेकिन रेवडिय़ां बांटने की सियासती प्रवृत्ति ने उनमें सहायक अध्यापक बनने की उम्मीदें जगा दी थीं। कोई आश्चर्य नहीं कि 12 सितंबर की रात हजारों शिक्षा मित्रों के परिवार में चूल्हा तक न जला हो।

प्रदेश में शिक्षा मित्रों की नियुक्ति 1999 में प्रारंभ हुई थी। इनका चयन ग्र्राम शिक्षा समितियों ने किया जिनके अध्यक्ष ग्र्राम प्रधान होते हैं। जिन शिक्षा मित्रों का चयन किया गया है उनमें एक लाख 24 हजार स्नातक हैं। 23 हजार तो मात्र इंटर पास ही हैं। सहायक अध्यापक पद पर समायोजन का फैसला लेने से पहले सरकार को इस पर होमवर्क करना चाहिए था, लेकिन ऐसा नहीं किया गया। इसके विपरीत आनन-फानन फैसलों को अमलीजामा पहनाने पर ध्यान दे दिया गया, जबकि टीईटी और बीएड पास अभ्यर्थी पहले ही यह घोषित कर चुके थे कि वह पूरे आदेश को चुनौती देंगे। वर्तमान में हाल यह है कि राज्य सरकार समायोजित हो चुके हजारों शिक्षकों को वेतनमान भी दे रही है।

वैसे हाईकोर्ट के इस फैसले से हताश उत्तर प्रदेश प्राथमिक शिक्षामित्र संघ के प्रदेश अध्यक्ष गाजी इमाम आला अभी लड़ाई जारी रखने की बात करते हैं। उन्होंने कहा कि 15 वर्षों से प्राथमिक शिक्षा की व्यवस्था शिक्षामित्रों ने सम्भाल रखी है। इसके आधार पर हमारे कुछ अधिकार बनते हैं। हम इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट जाएंगे। वे स्वीकार करते हैं कि हाईकोर्ट के इस आदेश से एक लाख 72 हजार शिक्षामित्रों के परिवार के सामने रोजी रोटी का संकट आ गया है।

यह पहला अवसर नहीं है जबकि सियासी नजरिये से भर्ती के बारे में फैसला लेने की वजह से राज्य सरकार को किरकिरी का सामना करना पड़ा। 72 हजार शिक्षकों की नियुक्ति में भी ऐसा हो चुका है। याद दिला दें कि बसपा सरकार में टीईटी की मेरिट के आधार पर नियुक्ति देने के फैसले को सपा ने सत्ता में आते ही पलट दिया था। सरकार ने नियमावली में संशोधन करके उसमें मेरिट का क्लास भी जोड़ा था। इस फैसले को अभ्यर्थियों ने सुप्रीम कोर्ट तक चुनौती दी थी और अंत में सरकार को अपने पैर वापस खींचने पड़े थे। उस प्रकरण में भी हजारों अभ्यर्थियों की उम्मीदें परवान चढ़ी थीं और बाद में उन्हें हताशा का सामना करना पड़ा था। दो बार आवेदन का खर्च उन्हें अलग से बर्दाश्त करना पड़ा था।

टीईटी मोर्चा के प्रदेश अध्यक्ष शिव कुमार पाठक के अनुसार हाईकोर्ट ने सरकार को आईना दिखाया है। यह प्राथमिक स्कूलों में पढ़ रहे एक करोड़ से अधिक नौनिहालों और तीन लाख टीईटी बेरोजगारों के भविष्य का सवाल है। कोर्ट का फैसला बेसिक शिक्षा जगत में मील का पत्थर साबित होगा।

वहीं टीईटी संघर्ष मोर्चा के संरक्षक संजीव मिश्र के अनुसार सरकार ने युवाओं को बांटने की साजिश की। योग्य अभ्यर्थी उपलब्ध होने के बावजूद शिक्षा मित्रों को अवसर दिया गया। यह अवसर की समता और समानता के सिद्धांत का उल्लंघन था।

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  1. सरकार को मिला सियासी नजरिए से फैसले लेने की प्रवृत्ति को आईना : कोई आश्चर्य नहीं कि 12 सितंबर की रात हजारों शिक्षा मित्रों के परिवार में चूल्हा तक नहीं जला
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