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मीना की दुनिया एपिसोड 02 | कहानी - पौधों की तरह | Meena Ki Duniya Episode 01 | Story - Paudhon Ki Tarah

मीना की दुनिया एपिसोड 02 | कहानी - पौधों की तरह | Meena Ki Duniya Episode 01 | Story - Paudhon Ki Tarah

आकाशवाणी केंद्र-लखनऊ | समय-11:15am | दिनांक: 22/09/2015

मीना अपनी क्लास में है|
बहिन जी- बच्चों जैसा कि हमने पिछले पाठ में पढ़ा था कि हमारी पृथ्वी अपनी धुरी पे गोल-गोल घुमती है| पृथ्वी का जो भाग सूर्य के सामने होता है वहां होता है दिन और दूसरे भाग में होती है.....|
“रात” सभी एक साथ जबाब दते हैं|
‘बिलकुल ठीक’ बहिन जी आगे कहती हैं, ‘इसी कारण अलग-अलग देशों का समय एक दूसरे से अलग होता है....उदहारण के तौर पर जब भारत में दिन होता है तब अमेरिका में रात होती है| मैं चाहती हूँ कि हमारी क्लास में दो-दो बच्चे एक चार्ट पर चार घड़ियाँ बनाके, चार अलग-अलग देशों के समय बताएँ| इसके लिए मैं तुम्हें दो-दो की टीमों में बाँट रही हूँ| हर टीम को अपना चार्ट बनाने के लिए एक दिन का समय मिलेगा| टीमें इस प्रकार हैं-
मोनू और दीपू
सुमी और गोलू
मीना.............|
बहिन जी ने पूरी क्लास को दो-दो की टीमों में बाँट दिया| हर एक टीम ने अपने-अपने चार्ट के बारे में सोचना शुरु किया| मीना और सोमा की टीम भी अपनी तैयारी में लग गयी|
मीना- सोमा हम चार्ट पे बनायेंगे ..अमरीका,जापान,इंग्लैण्ड और चीन की घड़ियाँ|
सोमा- हूँ हूँ हूँ ...|
“क्या सोच रही हो सोमा?” मीना ने पूँछा|
सोमा- मीना में सोच रही हूँ कि जो लोग पूरी दुनिया की सैर करते हैं उन्हें कितना मज़ा आता होगा|....मेरा बहुत दिल करता है कि मैं भी पूरी दुनिया घूमूं|
“पूरी दुनियां घूमूं खुशी में झूमूँ” मिठ्ठू चहका|
मीना- तुम ऐसा कर सकती हो सोमा|
सोमा- सच मीना, वो कैसे?
मीना- हूँ हूँ...हूँ...कैसे?....कै....हाँ...अगर तुम पढ़-लिख के पायलट बन जाओ तो फिर तुम्हें अपने हवाई जहाज लेके अलग-अलग देशों में जाना पड़ेगा|....हो जाएगा तुम्हारा विश्व भ्रमण|
और फिर आधी छुट्टी के समय जब सोमा स्कूल के मैदान में मीना के आने का इंतज़ार कर रही थी तो....
“सोमा-सोमा” सोमा की माँ ने आवाज़ लगायी|
“माँ.....माँ यहाँ क्या कर रहीं हैं?.....क्या बात हो सकती है?” सोमा अपनी माँ को जबाब देती है, ‘आ रही हूँ माँ?’
सोमा- माँ तुम यहाँ क्या कर रही हो?
सोमा की माँ- सोमा मेरी बात ध्यान से सुनो...मुझे तुम्हारे पिताजी का हाथ बटाने अभी इसी वक्त खेत जाना है इसीलिये पारो को तुम संभालो और....|
“पारो को....लेकिन माँ मैं पारो लो स्कूल में नहीं रख सकती| तुम खुद ही देख लो ये कितने जोर-जोर से रो रही है|....अगर मैं इसे अपने साथ क्लास में ले गयी तो सब बच्चे परेशान होंगे और...” सोमा ने जबाब दिया|
माँ- इसे क्लास में नहीं ले जा सकती तो घर ले जाओ|
सोमा- घर...लेकिन माँ अभी तो स्कूल का आधा दिन पड़ा है और फिर आधी छुट्टी के बाद बहिन जी हमें विज्ञान का एक पाठ भी पढ़ाने वाली हैं| अगर मैं घर चली गयी तो...|”
सोमा की माँ- बात को समझो सोमा....,मेरा खेत पे जाना बहुत जरुरी है| तुम्हारे पिताजी को बहुत काम है, वो अकेले इतना सब कैसे करेंगे?
“ठीक है माँ, मैं आपकी बात समझ गयी|”सोमा आह भरते हुए जबाब देती है|
सोमा की माँ- शाबाश! पारो को लो और घर जाओ...और इसका ध्यान रखना हाँ....और पौधों को पानी भी दे देना|
सोमा, पारो को लेकर अपने घर चली गयी| और फिर स्कूल की छुट्टी के बाद मीना सोमा के घर पहुँची|
मीना- सोमा, तुम अचानक कहाँ चली गयी थी| मैंने तुम्हें पूरे स्कूल में ढूंढा लेकिन तुम कहीं भी नहीं.....|
सोमा- ....मीना अब मैं कुछ दिन स्कूल नहीं आ पाउंगी ....क्योंकि अगले कुछ दिनों माँ को रोज़ खेत पे जाना होगा|
“और जो चार्ट बनाना था|” मीना ने पूँछा|
सोमा बोली, ‘मीना, तुम बहिन जी से कहके किसी और की टीम में शामिल हो जाओ क्योंकि पारो को संभालना और घर के कामों से बिलकुल भी समय नही मिलेगा|’
मीना- लेकिन सोमा अगर तुम......| “ओहो! माँ ने पौधों को पानी देने के लिए कहा था|” सोमा को अचानक याद आया ‘......तुम बैठो मैं पौधों को पानी देके अभी आती हूँ|
मीना- नही सोमा, मैं चलती हूँ| देर हो गयी तो माँ चिंता करेगी और हाँ जितनी जल्दी हो सके स्कूल आने की कोशिश करना|
इस बात को पूरे दो हफ्ते गुजर गए| और इन दो हफ्तों में सोमा एक दिन भी स्कूल नहीं गयी| उसे घर पे रुक के अपनी छोटी बहन पारो और पौधों का ख्याल जो रखना था| और फिर दो हफ्तों बाद सोमा स्कूल तो गयी लेकिन थोड़ी ही देर में घर वापस आकर वापस पारो के साथ खेलने लगी|
“सोमा तुम स्कूल से इतनी जल्दी वापस कैसे आ गयी,क्या हुआ? तुम इतनी परेशान क्यों लग रही हो बेटा?...आखिर बात क्या है?” माँ ने पूँछा|
सोमा- माँ..बहिन जी जो पाठ पढ़ा रहीं थी वो मुझे बिल्कुल भी समझ नहीं आ रहा था इसीलिए मैं क्लास ख़त्म होते ही चुपचाप वापस आ गयी|
माँ बोली, ‘इसमे वापस आने वाली क्या बात है? अगर पाठ समझ नहीं आ रहा था तो तुम बहिन जी से कह देतीं|’
सोमा- नहीं माँ, मेरे अलावा बाक़ी सब बच्चों को पाठ समझ में आ रहा था अगर मैं बहिन जी से कहती कि मुझे पाठ समझ नहीं आ रहा तो सब मेरा मजाक उड़ाते|
“..इससे अच्छा में घर पे रुक के पारो का ख्याल रखूं|” सोमा मन ही मन बडबडबडाई|
उस दिन से सोमा स्कूल तो जाती लेकिन कुछ देर में घर वापस लौट आती| मीना ने सोमा से बहुत बार कारण जानने की कोशिश की लेकिन सोमा ने उसे कुछ नहीं बताया| फिर एक दिन मीना अपनी माँ को लेके सोमा के घर आयी|
मीना की माँ- नमस्ते माला बहन|
“अरे! मीना की माँ” सोमा की माँ ने जबाब दिया, नमस्ते-नमस्ते ...आओ-आओ|
मीना की माँ- माला बहन, मीना बता रही थी कि कुछ दिनों से सोमा स्कूल से जल्दी वापस लौट आती है|
माला- अब क्या बताऊँ? इस बात से मैं खुद परेशान हूँ बिलकुल मुरझा गयी है मेरी सोमा|
मीना की माँ- बुरा मत मानना बहन लेकिन पारो को तो तुम बालबाड़ी में भी छोड़ सकती हो|...फिर उसकी वजह से सोमा की पढाई में समझौता क्यों?
सोमा की माँ अपनी सफाई देती हैं|
“सोमा बिटिया क्या बात है? आजकल तुम्हारा मन स्कूल में क्यों नही लगता|” मीना की माँ ने सोमा से पूँछा|
सोमा ने जबाब दिया, “बहिन जी क्लास ने क्या पढ़ाती हैं मुझे कुछ समझ में नहीं आता|”
मीना की माँ समझाती हैं, ‘...वो इसलिए सोमा बिटिया क्योंकि तुम पूरे दो हफ्ते तक स्कूल नही आयीं|...”
मीना की माँ माला से कहती हैं , ‘....ये बहुत जरुरी है कि बच्चे रोज़ स्कूल जाएँ बिना एक भी छुट्टी किये क्योंकि एक भी क्लास छूटी समझो ज्ञान की कड़ी टूटी|......क्या मैं पूंछ सकती हूँ कि तुम अपने पौधों को रोज पानी क्यों देती हो?’
माला- सीधी सी बात है अगर मैं पौधों को रोज पानी नहीं दूंगी तो वो मुरझा ही जायेंगे|
मीना की माँ- बिलकुल ठीक कहा तुमने जैसे पौधों को रोज पानी ना देने दे पौधे मुरझा जाते हैं वैसे ही रोज स्कूल ना जाने से बच्चों का दिमाग भी मुरझा जाता है,पढाई से उसका मन हट जाता है|
माला को या बात समझ आ जाती है और उन्हें अपनी गलती का अहसास होता है|

मीना और मिठ्ठू की कविता :

“मिठ्ठू बात बताता है जो मीना भी वो कहती,

रोज स्कूल जाने से ही पढाई में रुचि बनी रहती|

इसीलिये हर अभिभावक को करना होगा वादा,

रोज स्कूल बच्चों को भेजें कर मजबूत इरादा|

आज का गाना :

स्कूल बड़ा ही मज़ेदार है मिलते सारे दोस्त यार हैं,
साथ में पढ़ते साथ खेलते करते सबसे प्यार हैं|-2
साथ स्कूल हम जाते साथ ही वापस आते ,
कभी जो रूठे दोस्त कोई मिलकर उसे मानते|
दोस्त को हो जब अपनी जरूरत रहते हम तैयार हैं|
साथ में पढ़ते साथ खेलते करते सबसे प्यार हैं|-2
खूब मज़ा हम करते खेल-खेल में लड़ते,
लेकिन किसी दोस्त को अपने तंग कभी न करते|
साथ में पढ़ते साथ खेलते करते सबसे प्यार हैं|-2
आज का खेल- ‘नाम अनेक अक्षर एक’
अक्षर- ‘ग’
व्यक्ति- गौतम गंभीर
वस्तु- गमला
जानवर- गधा
जगह- गंगटोक (जोकि सिक्किम की राजधानी है|)

कहानी का सन्देश :

अगर एक भी क्लास छूटी ,समझो ज्ञान की कड़ी टूटी।

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  1. मीना की दुनिया एपिसोड 02 | कहानी - पौधों की तरह | Meena Ki Duniya Episode 01 | Story - Paudhon Ki Tarah
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