सरकारी स्कूल मतलब 'गरीबों' की शिक्षा : अव्यवस्थाओं के बीच कैसे जनप्रतिधियों, नौकरशाहों, अधिकारियों और न्यायाधीशों के बच्चे कैसे प्राप्त करेंगे शिक्षा
रायबरेली, जागरण संवाददाता : हाईकोर्ट द्वारा सुनाए गए फैसले में कहा गया कि जनप्रतिधिनियों, नौकरशाहों, अधिकारियों और न्यायाधीशों के बच्चे सरकारी स्कूलों में पढ़ेंगे। इस फैसले से आज भी लोग हतप्रभ नजर आ रहे है। क्योंकि सरकारी स्कूल लोगों की नजरों में 'गरीबों' की पहचान बन गए हैं। क्योंकि यहां योजनाओं की भरमार है पर संसाधनों का टोटा। कहीं दीवार टपक रही है तो कहीं शौचालयों में गंदगी का ढेर लगा नजर आता है। सरकारी योजनाओं से नसीहत लेकर प्राइवेट स्कूल पढ़ाई और अन्य व्यवस्थाओं में उनसे दो कदम आगे निकलते जा रहे है। जबकि सरकारी स्कूलों का दशा व दिशा का निर्धारण सरकार, मंत्री और अफसर आज तक नहीं कर सके है। कारण जो भी हो, पर यह जरूर तय है कि सरकारी स्कूलों में पंजीकृत छात्रों का भविष्य अंधकार की ओर बढ़ जा रहा है। परिषदीय स्कूलों में पढ़ने वाले छात्र आज भी अक्षर नहीं पहचान पाते है। जबकि यहां प्राइवेट स्कूलों से अच्छे अध्यापक तैनात हैं। इन अव्यवस्थाओं के बीच कैसे जनप्रतिधियों, नौकरशाहों, अधिकारियों और न्यायाधीशों के बच्चे शिक्षा प्राप्त करेंगे।
जिले के डीह विकास क्षेत्र के अंतर्गत आने वाले परशदेपुर में बना प्राथमिक विद्यालय फागूपुर अपनी दुर्दशा पर वर्षों से आंसू बहा रहा है। यहां अतिरिक्त कक्ष तो जैसे-तैसे बनवा लिया गया, लेकिन उसका उपयोग तक नहीं किया हुआ और दरवाजा का टूट गया। शौचालय में सिर्फ गंदगी ही गंदगी है और सफाई व्यवस्था बेहाल। जी हां जिले में सरकारी प्राथमिक और उच्च प्राथमिक विद्यालयों की दशा कुछ ऐसी ही हैं। जबकि एक कान्वेंट (प्राइवेट) स्कूल में शिक्षकों की तैनाती है समय पर विषयवार कक्षाएं चलती है और छात्रों को होमवर्क, स्कूल वर्क, जनरल नालेज (जीके) की जानकारी दी जाती है। आखिर ये सरकारी स्कूलों में क्यों संभव नहीं। सरकारी स्कूलों की ओर जब लोग नजर डालते है तो अपने दादी-दादा, नाना-नानी और मम्मी-पापा की यादें कहीं न कहीं जुड़ी नजर आती है। लेकिन वर्तमान में अभिभावक सरकारी स्कूलों में अपने बच्चों को पढ़ाना उचित नहीं समझता है। इससे लगता है कि सरकारी स्कूलों को 'गरीबों' का स्कूल की उपाधि दे दी गईं हो। इन हालातों में आने वाले नए सत्र से कैसे जनप्रतिनिधियों, नौकरशाहों, अधिकारियों और न्यायाधीशों के बच्चे शिक्षा प्राप्त करेंगे। क्या नए सत्र में सरकारी स्कूलों की व्यवस्था में वाकई सुधार होगा या फिर 'द्रोणचार्यों' की निगरानी 'गरीब एकलव्य' पढ़ाई करते नजर आएंगे। एक सरकारी स्कूल पर शिक्षकों की सेलरी, नि:शुल्क किताबें, एमडीएम, यूनीफार्म समेत अन्य योजनाओं पर खर्च हो रहा रुपए का हिसाब जोड़ा जाए तो वह पलक झपकते बजट लाखों में पहुंच जाएगा। फिर भी सरकारी स्कूल प्राइवेट स्कूलों की शिक्षा से पीछे क्यों।
जिला बेसिक शिक्षाधिकारी रामसागर पति त्रिपाठी ने बताया कि शिक्षा व्यवस्था को सुधारने को सभी प्रयास किए जाएंगे। इससे यहां पंजीकृत छात्रों का भविष्य संवर सके और वह भी आगे बढ़े। प्राइवेट स्कूलों की तर्ज पर सरकारी स्कूलों में भी शिक्षण कार्य कराने के निर्देश दिए जाएंगे।
खबर साभार : दैनिकजागरण
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सरकारी स्कूल (School) मतलब 'गरीबों' की शिक्षा : अव्यवस्थाओं के बीच कैसे जनप्रतिधियों, नौकरशाहों, अधिकारियों और न्यायाधीशों के बच्चे कैसे प्राप्त करेंगे शिक्षा
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