गरीब बच्चों के एडमिशन का मामला : मील का पत्थर साबित हो सकता है कोर्ट का फैसला : CMS को देना ही होगा 13 बच्चों को मुफ्त दाखिला
√यूपी सरकार के शासनादेश में सीटें देने के क्रम को आरटीई की भावना के विपरीत बताया
√2600 निजी स्कूल लखनऊ में, 75 हजार बच्चों के लिए दाखिले का रास्ता साफ
√यूपी में यह आंकड़ा पांच लाख के आस-पास होने का अनुमान
लखनऊ : सिटी मॉन्टेसरी स्कूल को कोर्ट ने आदेश दिया है कि वह आरटीई के तहत 13 बच्चों को एक सप्ताह में फ्री एडमिशन दे। हाई कोर्ट के जज राजन रॉय ने आदेश दिया है कि फीस, यूनिफॉर्म और अन्य मुद्दों पर सुनवाई जारी रहेगी। कोर्ट ने यूपी सरकार के शासनादेश में सीटें देने के क्रम को आरटीई की भावना के विपरीत बताया है। सीएमएस संस्थापक जगदीश गांधी ने कहा कि ऑर्डर देखने के बाद वे इस पर अपने वकीलों से राय लेंगे। सूत्रों के मुताबिक सीएमएस स्पेशल बेंच में अपील करने की तैयारी में है।
फैसले का असर• दूसरे स्कूल आरटीई के तहत एडमिशन लेने से इनकार नहीं कर पाएंगे।
• हर स्कूल को हर क्लास में कुल सीटों में 25 फीसदी सीटों पर गरीब बच्चों को नि:शुल्क पढ़ाना होगा।
• केवल लखनऊ में करीब 70 हजार बच्चों की नि:शुल्क पढ़ाई का रास्ता खुलेगा।
• यूपी में यह आंकड़ा पांच लाख के आस-पास होने का अनुमान है।
लखनऊ : आरटीई (राइट टू एजुकेशन) के तहत सीएमएस में 13 गरीब बच्चों को निशुल्क दाखिला देने का हाईकोर्ट का आदेश मील का पत्थर साबित हो सकता है। इससे दूसरे स्कूलों पर दबाव बनेगा और वे भी गरीब बच्चों को पढ़ाने के लिए बाध्य होंगे। जानकारों ने इसे कोर्ट का बड़ा और जनहित का फैसला बताते हुए कहा है कि अब सरकार को भी आरटीई की भावना की कद्र करते हुए निजी स्कूलों की मनमानी पर रोक लगानी चाहिए।
कोर्ट ने आरटीई के तहत सरकार के शासनादेश पर भी सवाल उठाए हैं, जिसमें कहा गया है कि सरकारी स्कूलों में सीटें फुल होने के बाद ही निजी स्कूल बाध्य होंगे। कोर्ट ने कहा है कि यह गलत है। आप इसे रीविजिट करें और आपके रूल्स और जीओ में जो भी गड़बड़ियां हैं, उसे दुरुस्त करें।
मामला और फैसला
सीएमएस, इंदिरा नगर में आरटीई के तहत 31 बच्चों को डीएम ने एडमिशन का पात्र पाया था। लेकिन सीएमएस ने जगह न होने की बात कहकर इन बच्चों को दाखिला देने से इनकार करते हुए हाई कोर्ट में याचिका दायर की थी। कोर्ट ने गुरुवार को स्कूल से एक किलोमीटर के दायरे में रहने वाले 13 बच्चों को एक हफ्ते में एडमिशन देने के लिए कहा है। बॉर्डर लाइन पर रहने वाले 14 बच्चों को इसी दायरे में किसी अन्य स्कूल में एडमिशन दिलवाया जाएगा। चार बच्चे दायरे के बाहर हैं।
प्रदेश सरकार के जीओ पर भी होगा असर
आरटीई एक्ट कहता है कि हर स्कूल 25 प्रतिशत सीटों पर गरीब बच्चों को दाखिला देने के लिए बाध्य हैं। जबकि प्रदेश सरकार ने एक्ट में प्रावधान जोड़ रखा है कि एक किलोमीटर के दायरे में अगर सरकारी स्कूल नहीं है तो निजी स्कूल में आवेदन किया जा सकता है, प्रदेश सरकार के जीओ में कहा गया है कि वार्ड में सरकारी स्कूल नहीं है तो निजी स्कूल में आवेदन कर सकते हैं।
सुप्रीम कोर्ट जा सकते हैं निजी स्कूल
दिल्ली की तरह लखनऊ के भी निजी स्कूल इस फैसले के खिलाफ कोर्ट जा सकते हैं। स्कूलों का तर्क है कि आरटीई में ही कई ऐसी खामियां हैं। उनके अपने तर्क हैं कि गरीबी का आधार तय होना चाहिए। यदि बीपीएल का सर्टिफिकेट कोई लेकर आता है तो उसकी जांच कौन करेगा/ सरकार तो इसकी खुद जांच कराती है, जबकि प्राइवेट में यह समस्या होगी। इसके अलावा बच्चों के पढ़ाई के स्तर में भी अंतर है। ऐसे में सरकारी स्कूल से आने वाले बच्चे को एक ही क्लास में एक साथ पढ़ाना संभव नहीं है।
खबर साभार : नवभारतटाइम्स
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