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एक छत के नीचे 'प्राइमरी का मास्टर' से जुड़ी शिक्षा विभाग की समस्त सूचनाएं एक साथ

मंत्रियों, जजों और अफसरों के बच्चे सरकारी स्कूल में ही पढ़ें ; अगले शैक्षिक सत्र से लागू करना होगा नियम : अगर प्राइवेट स्कूलों में पढ़ाया तो कर्मचारियों से वसूलो फीस प्रमोशन व इन्‍क्रीमेंट रुकेगा, यूपी की बदहाल प्राथमिक शिक्षा पर हाईकोर्ट का ऐतिहासिक आदेश

मंत्रियों, जजों और अफसरों के बच्चे सरकारी स्कूल में ही पढ़ें ; अगले शैक्षिक सत्र से लागू करना होगा नियम : यूपी की बदहाल प्राथमिक शिक्षा पर हाईकोर्ट का ऐतिहासिक आदेश


√मंत्रियों, जजों और अफसरों के बच्चे सरकारी स्कूल में ही पढ़ें


√सरकार से वेतन पाने वाले सभी कर्मचारियों के लिए अनिवार्य करने का निर्देश


√अगले शैक्षिक सत्र से लागू करना होगा नियम


√मुख्य सचिव को छह माह में नीति बनाने को कहा


√अदालत ने तल्ख टिप्पणियों से खोली सबकी पोल


इलाहाबाद। यूपी की बदहाल प्राथमिक शिक्षा पर कड़ी चोट करते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट ने ऐतिहासिक आदेश दिया है। अदालत ने साफ कहा है कि मंत्रियों, नेताओं, आईएएस व पीसीएस अफसरों, जजों, सरकारी कर्मचारियों के बच्चों को सरकारी प्राथमिक स्कूलों में ही पढ़ाया जाए। निगम, अर्द्धसरकारी संस्थानों या जो कोई भी राज्य के खजाने से वेतन ले रहा है, उनके बच्चों को सरकारी स्कूलों में ही पढ़ाना अनिवार्य किया जाए। कोर्ट ने मुख्य सचिव को आदेश दिया है कि वे अन्य अफसरों के साथ बैठ कर नीति बनाएं और छह माह में अदालत को अवगत कराएं। कोर्ट ने इस नियम को अगले शैक्षिक सत्र से अनिवार्य बनाने का निर्देश दिया है। शिवकुमार पाठक सहित दर्जनों याचिकाओं की सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति सुधीर अग्रवाल ने यह ऐतिहासिक आदेश दिया |


गणित विज्ञान की नई सूची बने :-


याचिका की विषय वस्तु पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने कहा कि गणित विज्ञान के सहायक अध्यापकों की भर्ती के लिए 1981 की नियमावली के नियम 14 के तहत नए सिरे से सूची तैयार की जाए और सूची में शामिल लोगों को नियुक्ति दी जाए।


अफसरों, सरकार की गलत और अविवेकपूर्ण नीतियों के चलते भर्तियों में आयी मुकदमों की बाढ़


कोर्ट का कहना है कि बेसिक शिक्षा विभाग के अफसरों, सरकार की गलत और अविवेकपूर्ण नीतियों, मनमाने फैसले और अवैधानिक संशोधनों से बेसिक शिक्षा का बंटाधार हो गया। गलत कार्यों के चलते भर्तियों के मामलों में मुकदमों की बाढ़ आ गई है। ऐसा तब है जब बेसिक शिक्षा परिषद का बजट प्रदेश के पांच सर्वाधिक अधिक बजट वाले विभागों में शामिल है।


तीन हिस्सों में बंटी प्राथमिक शिक्षा


एलीट क्लास : कुछ मिशनरियों और संपन्न वर्ग द्वारा संचालित इन स्कूलों में बेहतर सुविधाएं, योग्य स्टाफ है। यहां अधिकारी वर्ग, उच्च वर्ग और उच्च मध्यवर्ग के बच्चे पढ़ते हैं। इन स्कूलों में दाखिला और फीस आम आदमी के बूते से बाहर है।


मिडिल क्लास : यहां निम्न मध्य वर्ग और आर्थिक रूप से सामान्य स्थिति वालों के बच्चे पढ़ते हैं। स्कूलों की व्यवस्था एलीट से कुछ कम मगर बेहतर है।


परिषदीय प्राथमिक स्कूल : सूबे के 90 फीसदी बच्चे इन्हीं स्कूलों में पढ़ते हैं। आजादी के 68 साल बाद भी सवा लाख स्कूलों में पीने का पानी और शौचालय जैसी मूलभूत सुविधाओं की कमी है। वर्ष 2013 में इनमें 2.70 लाख शिक्षकों के पद रिक्त थे।


सरकार को सिर्फ वोट बैंक की चिंता, नौकरी देने में यही देख रही कि शिक्षक अनपढ़ न हो


प्राथमिक स्कूलों में शिक्षा मित्रों को सहायक अध्यापक बनाने की सरकार की नीति पर टिप्पणी करते हुए कोर्ट ने कहा कि सरकार की नजर शिक्षा की गुणवत्ता सुधारने के बजाय वोट बैंक बढ़ाने पर है। इसलिए अयोग्य लोगों को भी नियम बदल कर शिक्षक बनाया जा रहा है। अपने समर्पित मतदाताओं को नौकरी देने के लिए सिर्फ यह देखा जा रहा है कि वे अनपढ़ न हों।


अगर प्राइवेट स्कूलों में पढ़ाया तो कर्मचारियों से वसूलो फीस प्रमोशन व इन्‍क्रीमेंट रुकेगा


कोर्ट ने सख्त आदेश में कहा कि जो भी सरकारी कर्मचारी अपने बच्चे को सरकारी प्राथमिक स्कूल में न पढ़ाए, उसके लिए दंडात्मक प्रावधान किया जाए। ऐसे अफसरों, कर्मचारियों व जन प्रतिनिधियों के वेतन से उतना धन काट लिया जाए, जितना वे प्राइवेट स्कूल में दे रहे हैं। उनका प्रमोशन और इन्‍क्रीमेंट भी रोका जाए। इस पैसे का उपयोग सरकारी स्कूलों की बेहतरी के लिए किया जा सकता है।


         खबर साभार : अमरउजाला/डीएनए


अफसर, मंत्री, सरकारी कर्मचारी अपने बच्चों को सरकारी स्कूलों में पढ़ाएं' : प्राइवेट स्कूलों में बच्चों को पढ़ाने वाले सरकारी कर्मचारियों के वेतन से फीस के बराबर पैसा काटते हुए, प्रमोशन और इंक्रीमेंट भी रोक जाए

    





हाईकोर्ट का फैसलाः सरकारी स्कूलों में बच्चों को पढ़ाएं 'बड़े लोग'

लखनऊ। उत्तर प्रदेश के जूनियर और सीनियर बेसिक स्कूलों की दुर्दशा पर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सख्त कदम उठाया है। कोर्ट ने कहा है कि जब तक जनप्रतिनिधियों, नौकरशाहों व अन्य उच्च पदों पर बैठेअधिकारियों, न्यायाधीशों के बच्चे प्राइमरी स्कूलोंमें अनिवार्य रूप से नहीं पढ़ेंगे तब तक इन स्कूलों की दशा नहीं सुधरेगी।

हाईकोर्ट ने प्रदेश के मुख्य सचिव को आदेश दिया है किवह अन्य अधिकारियों से परामर्श कर यह सुनिश्चित करेंकि सरकारी, अद्र्ध सरकारी सेवकों, स्थानीय निकायों केजनप्रतिनिधियों,न्यायपालिका एवं सरकारी खजाने से वेतन, मानदेय या धन प्राप्त करने वाले लोगों के बच्चेअनिवार्य रूप से बेसिक शिक्षा परिषद द्वारा संचालित स्कूलों में शिक्षा प्राप्त करें। ऐसा न करने वालों के खिलाफ दंडात्मक उपबन्ध किए जाएं।

यदि कोई कान्वेन्ट स्कूल में अपने बच्चों को पढ़ाने के लिए भेजे तो उस स्कूल में दी जाने वाली फीस के बराबर धनराशि उसके द्वारा सरकारी खजाने में प्रतिमाह जमा कराई जाए। साथ ही ऐसे लोगों का इन्क्रीमेन्ट, प्रोन्नति कुछ समय के लिए रोकने की व्यवस्था हो। कोर्ट ने राज्य सरकार को 6 माह के भीतर ऐसी व्यवस्था करने का आदेश देते हुए कहा है कि अगले शिक्षा सत्र से इसे लागू किया जाए।यह आदेश न्यायमूर्ति सुधीर अग्रवाल ने शिव कुमार पाठक व कई अन्य की याचिकाओं को आंशिक रूप से स्वीकार करते हुए दिया है।

कोर्ट ने प्रदेश के एक लाख 40 हजार जूनियर व सीनियर बेसिक स्कूलों में अध्यापकों के दो लाख 70 हजार खाली पदों सहित स्कूलों में पानी आदि मूलभूत सुविधाएं मुहैया न होने पर तीखी टिप्पणी की है। कोर्ट ने कहा है कि प्रदेश में तीन तरह की शिक्षा व्यवस्था है। अंग्र्रेजी कान्वेन्ट स्कूल, मध्यमवर्ग के प्राइवेट स्कूल तथा उ.प्र. बेसिक शिक्षा परिषद द्वारा संचालित सरकारी स्कूल। अधिकारियों के बच्चों को सरकारी स्कूलों में पढऩे केलिए अनिïवार्य न करने से इन स्कूलों की दुर्दशा है। इनमें न योग्य अध्यापक हैं और न ही मूलभूत सुविधाएं है। कोर्ट ने मुख्य सचिव से 6 माह बाद कृत कार्यवाही की रिपोर्ट मांगी।

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इलाहाबाद : सरकार ऐसा कानून बनाए कि आईएएस, पीसीएस जैसे बड़े अफसरों और मंत्रियों के बच्चे सरकारी स्कूलों में ही पढ़ें। सरकारी कर्मचारियों के बच्चों का सरकारी स्कूूलों में पढ़ना अनिवार्य किया जाए। प्राइवेट स्कूलों में बच्चों को पढ़ाने वाले सरकारी कर्मचारियों के वेतन से फीस के बराबर पैसा काट लिया जाए। ऐसे लोगों का प्रमोशन और इंक्रीमेंट भी रोक दिया जाए। न्यायमूर्ति सुधीर अग्रवाल ने शिवकुमार पाठक की याचिका पर सुनवायी करते हुए यह कहा है। 

याचिका में कहा गया था कि बेसिक व जूनियर स्कूलों में गणित-विज्ञान के शिक्षकों के 1.40 लाख पद सिर्फ इस लिए खाली हैं कि अफसर उन्हें भरने की प्रक्रिया रोके हैं।

कोर्ट के समक्ष याचिकाकर्ता के वकील ने कहा कि अफसरों और नेताओं के बच्चे महंगे प्राइवेट स्कूलों में पढ़ते हैं। इसलिए उन्हें सरकारी स्कूलों की शिक्षा की गुणवत्ता का ध्यान नहीं है। इस पर कोर्ट ने उपरोक्त फैसला देते हुए सरकार से 6 महीने में रिपोर्ट देने को कहा है |

खबर साभार : अमरउजाला/हिन्दुस्तान/दैनिकजागरण


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  1. मंत्रियों, जजों और अफसरों के बच्चे सरकारी स्कूल में ही पढ़ें ; अगले शैक्षिक सत्र से लागू करना होगा नियम : अगर प्राइवेट स्कूलों में पढ़ाया तो कर्मचारियों से वसूलो फीस प्रमोशन व इन्‍क्रीमेंट रुकेगा, यूपी की बदहाल प्राथमिक शिक्षा पर हाईकोर्ट का ऐतिहासिक आदेश
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