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एक छत के नीचे 'प्राइमरी का मास्टर' से जुड़ी शिक्षा विभाग की समस्त सूचनाएं एक साथ

हाईकोर्ट का फैसलाः सरकारी स्कूलों में अपने बच्चों को पढ़ाएं अधिकारी : कोर्ट ने शिक्षा व्यवस्था पर भी की तल्ख टिप्पणी; यूपी में तीन तरह की शिक्षा व्यवस्था चल रही

हाईकोर्ट का फैसलाः सरकारी स्कूलों में अपने बच्चों को पढ़ाएं अधिकारी : कोर्ट ने शिक्षा व्यवस्था पर भी की तल्ख टिप्पणी



इलाहाबाद। उत्तर प्रदेश के सरकारी स्कूलों की दुर्दशा पर इलाहाबाद हाई कोर्ट ने सख्त कदम उठाया है। कोर्ट ने कहा है कि जब तक जनप्रतिनिधियों, उच्च पदों पर बैठे अधिकारियों और न्यायाधीशों के बच्चे सरकारी स्कूलों में नहीं पढ़ेंगे, तब तक इन स्कूलों की दशा नहीं सुधरेगी।

यह व्यवस्था लागू करने का आदेश मंगलवार को न्यायमूर्ति सुधीर अग्रवाल ने शिव कुमार पाठक व अन्य की याचिकाओं को आंशिक रूप से स्वीकार करते हुए दिया। हाई कोर्ट ने छह माह के भीतर मुख्य सचिव को यह सुनिश्चित करने को कहा है कि सरकारी, अर्ध सरकारी सेवकों, स्थानीय निकायों के जनप्रतिनिधियों, न्यायपालिका एवं सरकारी खजाने से वेतन, मानदेय या धन प्राप्त करने वाले लोगों के बच्चे अनिवार्य रूप से बेसिक शिक्षा परिषद के स्कूलों में पढ़ें। ऐसा न करने वालों के खिलाफ दंडात्मक कार्रवाई की जाए। यदि कोई कॉन्वेंट स्कूल में अपने बच्चों को पढ़ाने के लिए भेजे तो उस स्कूल में दी जाने वाली फीस के बराबर धनराशि उससे प्रतिमाह सरकारी खजाने में जमा कराई जाए। ऐसे लोगों की वेतनवृद्धि व प्रोन्नति कुछ समय के लिए रोकने की व्यवस्था हो। कोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार को अगले शिक्षा सत्र से इस व्यवस्था को लागू करने को कहा है।

उप्र में तीन तरह की शिक्षा

न्यायाधीश ने कहा है कि प्रदेश में तीन तरह की शिक्षा व्यवस्था है। अंग्रेजी कॉन्वेंट स्कूल, मध्यम वर्ग के लिए प्राइवेट स्कूल तथा उत्तर प्रदेश बेसिक शिक्षा परिषद द्वारा संचालित सरकारी स्कूल। अधिकारियों के बच्चों की सरकारी स्कूलों में पढ़ाई अनिïवार्य न होने से इन स्कूलों की दुर्दशा है।

शिक्षा व्यवस्था पर भी तल्ख टिप्पणी

कोर्ट ने एक लाख 40 हजार प्राइमरी व जूनियर स्कूलों में अध्यापकों के दो लाख 70 हजार खाली पदों सहित स्कूलों में पानी आदि मूलभूत सुविधाएं न होने पर तीखी टिप्पणी की है। कहा है, इन स्कूलों में न योग्य अध्यापक हैं और न ही मूलभूत सुविधाएं है। कोर्ट ने गणित व विज्ञान विषयों के शिक्षकों की भी नई सूची बनाने का निर्देश दिया है।

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सरकारी खजाने से वेतन या सुविधा ले रहे बड़े लोगों के बच्चे जब तक अनिवार्य रूप से प्राथमिक शिक्षा के लिए सरकारी स्कूलों में नहीं पढ़ेंगे, तब तक उनकी दशा में सुधार नहीं होगा। -इलाहाबाद हाई कोर्ट

       खबर साभार : दैनिकजागरण

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