प्राथमिक स्तर पर ज्यामिति शिक्षण
औपचारिक स्कूल में दाखिला लेने के पहले, परिवेश और पास-पड़ोस से पारस्परिक क्रियाओं के दौरान बच्चे का विभिन्न आकारों व आकृतियों (2-D और 3-D) से सामना होता है। उसे इस बात की समझ होती है कि हर चीज का एक आकार होता है। हर आकार की कुछ आसानी से पहचानी जाने वाली विशेषताएँ होती हैं जिन्हें देखा जा सकता है, पहचाना जा सकता है, नाम दिया जा सकता है, उनका वर्णन किया जा सकता है और उन्हें वर्गीकृत भी किया जा सकता है। इन आकारों के विभिन्न उदाहरणों से बच्चे का परिचय पहले से ही होता है।
प्राथमिक स्तर पर ज्यामिति शिक्षण के लिए जरूरी है कि परिवेश में इस्तेमाल होने वाली रोजमर्रा की वस्तुओं जैसे घनाभ, बेलन, गोला और आमतौर पर सामने आने वाली आकृतियों जैसे आयत, वृत्त, चौकोर, त्रिभुज आदि से उनके इस परिचय को ध्यान में रखा जाए। हालाँकि यहाँ यह ध्यान रखना जरूरी है कि बच्चा शायद इन सब नामों से परिचित न हो और इसलिए इस शब्दावली से उसका परिचय तभी कराया जाना चाहिए जब वह किसी आकृति और उसके व्यवहार से अच्छी तरह वाकिफ हो जाए। तब तक बच्चा आसान किस्म के वर्णन ‘सूरज जैसा’, ‘दरवाजे जैसा’, ‘गेंद जैसा’, ‘बक्से जैसा’ इत्यादि का इस्तेमाल कर सकता है।
प्राथमिक स्तर पर ज्यामिति शिक्षण का उद्देश्य बच्चे की स्थानिक समझ बनाना व कल्पनाशक्ति पैदा करना है। जिसके फलस्वरूप इसमें आकार, आकृति, स्थिति (एक वस्तु के सम्बन्ध में दूसरी वस्तु की), दिशा और गति (सरकना, पलटना, घूमना) का अध्ययन जरूरी रूप से शामिल होता है। और इसीलिए कुछ सवाल निश्चित रूप से उठते हैं:
बच्चों की स्थानिक समझ बनाने व उनकी कल्पनाशक्ति को बढ़ाने के लिए किस तरह की गतिविधियाँ करवाई जानी चाहिए व किस तरह के अनुभव दिए जाने चाहिए।खेल क्यों जरूरी हैं। क्या बच्चों को अपनी इच्छा अनुसार स्वतंत्र रूप से खेलने देना चाहिए या शिक्षक को किसी खास तरीके से गतिविधि का मार्गदर्शन करना चाहिए? किस स्थिति में शिक्षक को गतिविधि में दखल देना चाहिए।क्या गतिविधियाँ खुली होनी चाहिए। शिक्षक का ध्यान किस बात पर होना चाहिए। बच्चे को स्थिति की समझ बनाने में मदद करने पर या परिणाम प्राप्त करने पर।क्या ज्ञान को फिर से बनाने की जरूरत है?हमें कैसे पता चलेगा कि बच्चा अलग-अलग आकृतियों की विशेषताओं को जानने लगा है।किस स्तर पर पहुँचकर हमें औपचारिक शब्दावली इस्तेमाल करनी चाहिए?आकृतियों व उनके व्यवहार के बारे में बच्चों की समझ का आकलन कैसे किया जाए?
हालाँकि यहाँ मैंने उम्र के हिसाब से उपयुक्त कुछ ऐसी गतिविधियाँ सुझाई हैं जो मुझे मददगार लगीं। ऐसी कई सारी और भी गतिविधियाँ हैं जो इसी समझ को बनाने में मदद करती हैं। इस स्तर पर मैं कुछ ऐसे मानदण्ड सुझाना चाहूँगी जिनके जरिए हम अपने उद्देश्य के लिए चुनी गई गतिविधियों का आकलन कर सकते हैं।
क्या गतिविधि प्रत्यक्ष जानकारी प्रदान करती है।क्या वह विषय में दिलचस्पी पैदा कर पाएगी? क्या वह प्रमुख अवधारणाओं की समझ बनाने में मदद करेगी।क्या गतिविधि उस प्रमुख विषयवस्तु को खोजने में बच्चे की मदद करती है जिसे हम पढ़ाना-समझाना चाहते हैं?क्या गतिविधि बच्चों को सृजन करने व अपने मन में आने वाले सवाल-जवाब करने देती है? क्या गतिविधि प्रासंगिक कौशलों को प्राप्त करने की दिशा में प्रेरित करती है?क्या गतिविधि जरूरी जानकारी को समझने के लिए पर्याप्त ठोस अनुभव देती है?क्या गतिविधि सम्बन्ध बनाने और एक दिमागी नक्शा तैयार करने में मदद करती है?
जो गतिविधियाँ मैंने सुझाई हैं वो किसी रेखीय क्रम में नहीं हैं। शुरुआती कुछ सालों में की जाने वाली कई सारी गतिविधियों में आकृतियों (2-D और 3-D) से खेलना व उनके व्यवहार को समझना शामिल होता है। बच्चे आकृतियों को आपस में जमाकर, उन्हें घुमाकर, पैटर्न में जमाकर और उनके जरिए एक पूरी तस्वीर बनाकर स्वाभाविक रूप से आकृतियों की छानबीन करते हैं। इन प्रक्रियाओं के दौरान वे इन आकृतियों की विशेषताएँ, किस तरह यह आकृतियाँ आपस में जुड़ जाती है, कैसे कुछ आकृतियों को मिलाकर कुछ दूसरी आकृतियाँ बनाई जाती हैं, आकृति के किसी एक गुण के बदलाव करने से आकृति पर क्या प्रभाव पड़ता है आदि बातों को अपने दिमाग में बिठा लेते हैं। वो किसी आकृति के किसी खास तरह के व्यवहार के कारणों को जानने की कोशिश भी कर सकते हैं। उदाहरण के लिए एक छोटा बच्चा सहज ज्ञान से यह समझ सकता है कि दो आकृतियों को बिना किसी अन्तराल के आपस में जमाने के लिए उनके किनारों का सीधा होना जरूरी है। वे देख सकते हैं कि कैसे कुछ गुण कुछ दूसरे गुणों से मेल खाते हैं, कुछ विशेषताएँ कुछ दूसरी विशेषताओं से जुड़ती हैं, कैसे आकृति की विशेषताएँ दूसरी विशेषताओं से जुड़ती हैं। उदाहरण के लिए 3 भुजाओं वाली एक आकृति में 3 कोने होते हैं, 4 भुजाओं वाली एक आकृति में 4 कोने होते हैं। कोई बच्चा किसी आकृति को अपने चित्र में जिस तरह से दर्शाता है उससे भी यह देखा जा सकता है कि उसने आकृति को एक पूर्ण आकृति के रूप में समझा है या उसकी किसी एक विशेषता पर ध्यान दिया है। (जैसे वर्ग की भुजाओं की समानता।)
हमें यह बात भी ध्यान में रखनी चाहिए कि आखिरकार समझ बनाने की बच्चे की अपनी कोशिशें ही उसे सीखने की दिशा में आगे ले जाएँगी।
मैंने कुछ ऐसी गतिविधियाँ भी शामिल की हैं जिनमें बच्चों को आकृति बनाने के लिए अपने शरीर का इस्तेमाल करना है या जमीन पर बनी किसी आकृति के घेरे (outline) पर चलना है। यह तो काफी सुस्थापित बात है कि ऐसी गतिविधियाँ जिनमें शरीर की हरकतें भी शामिल हो बच्चों की मानसिक परिकल्पना (किसी वस्तु की दिमागी तस्वीर बनाने की क्षमता) व कल्पनाशक्ति को बढ़ाती हैं।
बीच-बीच में मैंने कागज मोड़कर की जानेवाली गतिविधियाँ भी सुझाई हैं। बच्चों के साथ ऑरेगैमी गतिविधियाँ करने वाले मेरे एक मित्र ने मुझे कुछ बातें बताईं। कागज मोड़कर करने वाली गतिविधियों के दौरान इन बातों को दिमाग में रखना अच्छा होगा। 4 साल की उम्र के बच्चे ठीक-ठीक मोड़ बनाने लगते हैं, लेकिन एकदम सही मोड़ बनाना 7 बरस की उम्र तक ही आ पाता है। इसी तरह बच्चे मूलभूत ज्यामितीय आकृतियों को काफी जल्दी पहचानने लगते हैं और कागज मोड़कर उन्हें बनाने में शिक्षक की नकल भी कर लेते हैं लेकिन बिलकुल ठीक-ठीक आकृति बनाना आमतौर पर 7 बरस की उम्र तक ही आ पाता है। एक और मजेदार बात जो उन्होंने बताई वह यह कि 7 साल तक की उम्र के बच्चे ही शिक्षक के सामने बैठकर कागज मोड़ने की नकल कर पाते हैं। छोटे बच्चों को ऐसा करने के लिए शिक्षक के बगल में बैठने की जरूरत होती है। साथ ही 7 साल तक की उम्र के बच्चे ही दर्पण प्रतिबिम्बों (Mirror Images) के साथ सहज महसूस कर पाते हैं।
ज्यामिति काफी हद तक मापन से जुड़ी हुई है और शिक्षक होने के नाते गतिविधियों के दौरान हम अकसर मापन सम्बन्धी अवधारणाओं व भाषा का इस्तेमाल करते हैं। हाँलाकि इस लेख में मैंने केवल ज्यामितिय पहलुओं पर ही ध्यान केन्द्रित किया है। मापन पर बातचीत मैं फिर करूँगी।
एक बात जो शिक्षकों को जरूर ध्यान में रखनी चाहिए वह यह कि गतिविधियाँ कभी भी अस्त–व्यस्त तरीके से न हों। सीखने की प्रक्रिया को पुख्ता बनाने के लिए गतिविधियाँ धीरे-धीरे क्रमानुसार होनी चाहिए।
अवधि :
(दिन )
गतिविधि चरण:
पहले साल के लिए गतिविधियाँ
गतिविधि – एक : पृथक्करण की गतिविधियाँ
जरूरी सामग्री : 3-D वस्तुएँ जैसे गेंद (टेनिस की गेंद, पिंग-पाँग गेंद) लकड़ी के गुटके या टेप लगे हुए गत्ते के छोटे-छोटे बक्से जिनमें बुरादा भरा हो, बेलन (टिन कैन), प्रिज्म सरीखी आकृतियाँ, अलग-अलग व्यास वाली बेलनाकार नलियाँ, शंकु।
पृथक्करण की गतिविधियाँ स्वतंत्र रूप से किए जाने वाले खेलों का हिस्सा हैं, लेकिन शिक्षक सामग्री को विभिन्न प्रकार से पृथक करने को कहकर इन गतिविधियों को निर्देशित कर सकते हैं। हर बच्चे को कोई एक सामग्री उठाने दें। उन सभी बच्चों को जिनके पास एक घनाभ हो एक घेरा बनाने को कहा जा सकता है। जिन बच्चों ने गोला उठाया हो वे एक दूसरा घेरा बना लें।
लुढ़कने के गुण के आधार पर पृथक्करण: चीजें जो लुढ़कती हैं और जो नहीं लुढ़कतीं। बच्चे चीजों को लुढ़काकर जाँच सकते हैं, या फिर अगर वो पहले से उन आकृतियों से खेलते रहे हैं और उस गुण को समझने लगे हैं जिसकी वजह से कोई वस्तु लुढ़कती है (घुमावदार सतह) तो उसके आधार पर बिना जाँचे भी चीजों को पृथक कर सकते हैं। हालाँकि यह देखना दिलचस्प होगा कि वे बेलनाकार चीजों पर किस तरह की प्रतिक्रिया देते हैं। शिक्षक इस पर चर्चा भी कर सकते हैं। बेलनाकार वस्तु सपाट सतह वाले भाग से रखने पर लुढ़कती है (जरूरी नहीं कि शिक्षक इन शब्दों का इस्तेमाल करें वे सपाट सतह की ओर केवल इशारा भी कर सकते हैं) या घुमावदार सतह वाले भाग से रखने पर? लुढ़कने वाली सभी वस्तुओं को आगे और भी पृथक किया जा सकता है गेंदों और टिनों के आधार पर।
लम्बाई के आधार पर पृथक्करण: बड़ी गेंदें व छोटी गेंदें, बड़े घन व छोटे घन, बड़े घनाभ व छोटे घनाभ (घन, घनाभ जैसे नामों को बताए बिना)।
पृष्ठों/फलकों के आधार पर पृथक्करण: आयताकार फलकों वाली चीजें, तिकोन फलकों वाली चीजें, गोलाकार फलकों वाली चीजें।
सामग्री के आधार पर पृथक्करण: 2-D आकृतियाँ या चीजें: आयत, वर्ग, त्रिभुज, वृत्त, अण्डाकार, कागज की प्लेटें, अँगूठियाँ, चूडि़याँ – हर प्रकार की कई सारी सामग्री, वे भी अलग-अलग नाप की।
किनारों के आधार पर पृथक्करण: सीधे किनारों वाली आकृतियाँ, घुमावदार किनारों वाली आकृतियाँ।
भुजाओं के आधार पर पृथक्करण: बच्चे आकृतियों को त्रिभुजों व आयतों में पृथक कर सकते हैं। स्कूल जाने से पहले की उम्र के बच्चे चीजों को एक पूर्ण के रूप में देखते हैं और किसी आकृति की विशेषताएँ जैसे भुजाओं की संख्या आदि पर ध्यान देने की क्षमता चार वर्ष की उम्र तक विकसित होती है।
गतिविधि-दो: मिलान करने की गतिविधियाँ
जरूरी सामग्री: 3-D वस्तुएँ,अलग-अलग आकृतियाँ (हर आकृति दो अलग-अलग नाप की), ज्यामितीय इनसेट (चित्र देखें, चित्रhttp://wwwchuckswoodentoys.com/content-popup_image/pID-2689/popup_image.html से लिया गया है)
आकृतियों की डाकपेटी: बच्चों को छेदों के जरिए आकृतियों को बक्से (जैसा कि चित्र में दिखाया गया है, चित्रhttp://www.mommymoment.ca/2011/11/the-aims-of-metal-insets.html) से लिया गया है) में डालने दें। मजबूत गत्ते या प्लाईवुड का इस्तेमाल करके ऐसा बक्सा बनाया भी जा सकता है।
ज्यामितीय इनसेट: बच्चे हर आकृति को उसके समरूप स्थान पर रख सकते हैं (जैसा कि चित्र में दिखाया गया है)। वे आकृति को घुमाकर देख सकते हैं कि वह किस-किस तरह से उसमें फिट बैठती है।
बच्चों को बड़े घन का छोटे घन से, बड़े गोले का छोटे गोले से, एक बड़े चौकोर का एक छोटे चौकोर से, एक बड़े त्रिभुज का एक छोटे त्रिभुज से इत्यादि का मिलान करने दें।
गतिविधि-3 : बाहर की जानेवाली गतिविधियाँ
आकृतियाँ बनाना: फर्श पर या बाहर मैदान पर एक बड़ा-सा गोल घेरा बनाएँ। बच्चों से उस पर चलने को कहें। उन्हें बारी-बारी से घड़ी की दिशा व घड़ी की विपरीत दिशा दोनों में चलने को कहें। उन्हें गोल घेरे के अन्दर व बाहर कूदने को कहें।
बच्चों से एक गोला बनाकर बैठने को कहें। कभी-कभी उन्हें यह मुश्किल लगता है और वे अण्डाकृति बना सकते हैं। उन्हें हाथ पकड़कर एक अच्छा गोला बनाने में मदद करें।
संगीत चौकोर: आप कुर्सी दौड़ के खेल को थोड़ा बदलकर भी खेल सकते हैं। एक चौकोर बनाएँ और बच्चों से कहें कि आपके ताली बजाने पर वे उस चौकोर पर चलें। उन्हें कहें कि आपके ताली बजाना बन्द करने पर वे किसी एक भुजा पर रुकें या फिर किसी एक कोने पर रुकें।
योगासन आकृतियाँ: वे अपने हाथों व पैरों का इस्तेमाल कर चौकोर, आयत व त्रिभुज इत्यादि आकृतियाँ बना सकते हैं। विभिन्न प्रकार के योगासनों में भी आकृतियाँ देखी जा सकती हैं।
रस्सी के साथ गतिविधियाँ: बच्चों को एक लम्बी-सी रस्सी (जैसे कूदने वाली) दें और उसे कसकर खींचते हुए एक सीधी रेखा बनाने को कहें। अब बच्चों को उसे ढीला छोड़ते हुए खींचने को कहें ताकि एक घुमावदार रेखा बन सके। वे एक लहरदार रेखा भी बना सकते हैं।
जमीन पर एक सीधी रेखा, एक घुमावदार रेखा व एक टेढ़ी रेखा बनाएँ। ताली बजाने पर बच्चों को एक साथ रेखाओं पर चलने को कहें। वे बिना सन्तुलन खोए एक पैर को एक रेखा पर और तुरन्त ही दूसरा पैर सामने वाली रेखा पर रखकर चलने की भी कोशिश कर सकते हैं।
उन्हें प्रकृति की सैर पर ले जाएँ और तरह-तरह की चीजें जैसे पत्तियाँ, छडि़याँ, पत्थर आदि इकट्ठा करने को कहें। उन्हें पत्तियों के किनारों का अवलोकन करने को कहें। कुछ के किनारे घुमावदार होते हैं तो कुछ के टेढ़े-मेढ़े। कुछ पत्थरों के किनारे सीधे होते हैं तो कुछ के टेढ़े। वे इन चीजों के ऊपर रगड़कर भी देख सकते हैं। (जैसे किसी भी चीज का छापा लेने के लिए उसके ऊपर कागज रखकर उस कागज पर पेंसिल या क्रेयान रगड़ें।)
गतिविधि-चार : इमारत आकृतियाँ बनना
3-D चीजों के साथ: बच्चे अलग-अलग आकार के गुटके इस्तेमाल कर टॉवर बना सकते हैं। वे इनका इस्तेमाल कर सुरंग, घर, सड़क आदि और अन्य प्रचलित आकृतियाँ भी बना सकते हैं।
यह देखना काफी रोचक होगा कि इन्हें बनाने के लिए वे किस आकृति के गुटके चुनते हैं। एक बच्चा जिसने ढलुआ छतें देखी हों छत बनाने के लिए उलटे कोन का इस्तेमाल कर सकता है। इन अवधारणाओं को और पुख्ता करने के लिए मापन सम्बन्धी भाषा (ऊँचा, लम्बा, छोटा, चौड़ा, संकरा) व स्थिति को दर्शाने वाली भाषा (अन्दर, ऊपर, नीचे, के ऊपर, पीछे, आगे, बाजू में) का भरपूर इस्तेमाल कर सकते हैं।
शिक्षक निर्देश दे सकते हैं जैसे ‘5 गुटकों को एक के ऊपर एक रखो। इसके बाद की हर पंक्ति में 3 गुटके रखो।’
2-D चीजों के साथ: बच्चे डिजाइन व पैटर्न बनाने के लिए 2-D आकृतियाँ इस्तेमाल कर सकते हैं और आकृतियों को जोड़-जोड़कर बिल्ली, घर आदि जैसी चीजों के चित्र भी बना सकते हैं।
किसी जानवर या घर को दर्शाने का बच्चों का तरीका उस आकार की उनकी मानसिक छवि (Mental Image) की ओर संकेत करता है। शुरुआती स्तर पर बच्चा शरीर के हर भाग को एक ही आकृति से दर्शाता है। वह सिर को दर्शाने के लिए एक गोला, शरीर को दर्शाने के लिए आयत और चारों पैरों को दर्शाने के लिए चार त्रिभुज चुन सकता है। 5 वर्ष की उम्र में बच्चे जानवर के कानों को दर्शाने के लिए त्रिभुजों, सिर के लिए गोले का इस्तेमाल कर सकते हैं। शरीर को दर्शाने के लिए कई आयतों को जोड़ना या बार-बार आयतों को दोहराना (यह सिर के आकार की तुलना में शरीर के आकार का बड़ा होने की जानकारी की ओर संकेत करता है) शुरू कर सकते हैं। पैरों को दर्शाने के लिए वे छोटे या बड़े आयतों का इस्तेमाल कर सकते हैं।
शतरंज का बोर्ड व रंगीन बटन: बच्चे शतरंज के बोर्ड पर अलग-अलग तरीकों से बटनों को एक पंक्ति में जमा सकते हैं। वे बटनों को अलग-अलग तरीके से जमाकर कई मज़ेदार आकृतियाँ भी बना सकते हैं।
खेल के दौरान बातचीत: जब बच्चे आकृतियों से खेल रहे हों तो शिक्षक बातचीत की शुरुआत कर सकते हैं। उदाहरण के लिए यदि कोई बच्चा गोले से खेल रहा हो तो शिक्षक पूछ सकते हैं, "यह किसके जैसा लगता है?" बच्चा कह सकता है ‘चाँद’ या ‘सूरज’ की तरह। "और कौन-सी चीजें हैं जो इसी तरह की दिखती हैं? क्या क्लास में कोई ऐसी चीज है जिसकी आकृति इस जैसी हो? क्या तुम्हारे शरीर का कोई अंग ऐसा लगता है?"
दर्शाना व चित्र बनाना: बच्चे को कागज पर एक गोला बनाने को कह सकते हैं। वह गोले के काफी करीब की एक आकृति बना सकता है। उसे एक बड़ा गोला, एक उससे बड़ा गोला, एक छोटा गोला, एक उससे भी छोटा गोला बनाने को कह सकते हैं। उससे पूछें कि क्या वो गोले के अन्दर एक और गोला बना सकता है, क्या वो 1 बड़े व 2 छोटे गोलों का इस्तेमाल कर एक चेहरा बना सकता है। इसी तरह उन्हें और आकृतियाँ भी बनाने दें। बहुत से बच्चे सूरज और उससे निकलती किरणों का चित्र बनाते हैं। वो एक गोलाकार आकृति और छडि़यों से भी सूरज बना सकते हैं। बड़े होने पर वे किरणों को बराबर-बराबर दूरी पर दर्शाना शुरू करते हैं।
कभी-कभी बच्चे चौकोर को आयत कहते हैं। यह जरूरी है कि आप यह न कहें कि ‘यह आयत नहीं है चौकोर है।’ बजाए यह कहने के आप कह सकते हैं कि ‘यह एक खास तरह का आयत है जिसे चौकोर कहते हैं।’
बिन्दुओं को जोड़ना: बहुत-सी गतिविधि वाली किताबों और अभ्यास पुस्तिकाओं में बिन्दुओं से बने चित्र होते हैं जिनमें बच्चों को लाइन बनाकर उन बिन्दुओं को जोड़ना होता है। यह काफी मजेदार गतिविधि होती है। और इनसे स्वतंत्र रूप से रेखाचित्र (Line drawing) बनाने की क्षमता भी निखरती है। (बहुत ही अच्छा होगा कि इस तरह की गतिविधियों में स्केल का इस्तेमाल करने की जरूरत न पड़े।)
अलग-अलग तरह की रेखाओं से पैटर्न बनाना: शिक्षक बच्चों को रेखाओं के कुछ आसान से पैटर्न अभ्यास करने व नकल करने के लिए दे सकते हैं। वो अपने खुद के पैटर्न भी बना सकते हैं।
आकृतियों की खोज: स्कूल में "आकृतियों की खोज" का एक आयोजन करें। बच्चे किसी भी एक विशेष आकृति जैसे वृत्त को अपने आसपास व पूरे स्कूल में खोजें (उदाहरण के लिए स्कूल में खेलने वाली गेंद, घण्टी, पानी का डिब्बा, गिलास, कचरे का डिब्बा)।
-द्वारा पद्यप्रिया शिराली आभार:टीचर्स ऑफ इण्डिया
1 Comments
कक्षा शिक्षण : प्राथमिक स्तर पर ज्यामिति शिक्षण के लिए जरूरी है कि परिवेश में इस्तेमाल होने वाली रोजमर्रा की वस्तुओं जैसे घनाभ, बेलन, गोला और आमतौर पर सामने आने वाली आकृतियों जैसे आयत, वृत्त, चौकोर, त्रिभुज आदि से उनके इस परिचय………………
ReplyDelete>> READ MORE @ http://www.basicshikshanews.com/2015/07/blog-post_86.html