बचपन तो नहीं छीन रहा..शिक्षा का अधिकार क़ानून
स्कूल के सामने से गुजरते कारवां को निहारते स्कूली बच्चे।
शिक्षा का अधिकार क़ानून 6 से 14 साल तक की उम्र के बच्चों को शिक्षा का हक़ दिलाने का आश्वासन देना है। लेकिन इसके कुछ प्रावधान बाल अधिकारों का हनन करते दिखाई देते हैं। इस क़ानून के तहत पहली कक्षा में प्रवेश पाने वाला बच्चा अगले साल स्वतः दूसरी कक्षा में क्रमोन्नत हो जाता है।
कम उम्र में बच्चों का स्कूल में नामांकन होने के कारण बहुत सारे बच्चे छह साल की उम्र में ही तीसरी और चौथी कक्षा में बैठने को मजबूर हैं। उनको अपना नाम बताने में झिझक महसूस होती है। अपना नाम लिखने में परेशानी होती है…। ऐसे में वे तीसरी-चौथी के स्तर की किताबों के साथ क्लास में कैसा महसूस करते हैं..यह तो उनके संबंधित शिक्षक ही बता सकते हैं।
लेकिन शिक्षकों पर प्रवेश के लिए बनने वाले दबाव से उपजी स्थिति शिक्षा व्यवस्था के लिए शुभ संकेत नहीं है। यह नियमों के जाल में लिपटी शिक्षा व्यवस्था की एक नजीर भर है…ऐसे किस्से सैकड़ों-हज़ारों हैं। ऐसी स्थिति देखकर लगता है कि शिक्षा का अधिकार दिलाने की हड़बड़ी में बने नियम ही बच्चों की प्रगति में दीवार बनकर खड़े हो गए हैं।
नीतियों का निर्माण करने वाले और उसे लागू करने वाले अपनी डफली, अपना राग वाले फार्मूले पर चल रहे हैं….और बच्चे रोज़ाना एक नई मुसीबत का सामना कर रहे हैं।
आभार : बृजेश सिंह
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मन की बात : शिक्षकों पर प्रवेश के लिए बनने वाले दबाव से उपजी स्थिति शिक्षा व्यवस्था के लिए शुभ संकेत नहीं, यह नियमों के जाल में लिपटी शिक्षा व्यवस्था की एक नजीर भर है……………
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