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एक छत के नीचे 'प्राइमरी का मास्टर' से जुड़ी शिक्षा विभाग की समस्त सूचनाएं एक साथ

मन की बात : आजकल बेजा बेसिक शिक्षा में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा की चर्चा की बात चल निकली है पर बच्चे के लिए 'शिक्षा अर्जन तनावमुक्त' पर टीचर के लिए 'शिक्षण कार्य तनावयुक्त' होने के साथ शासन के द्वारा पिछले कई वर्षों से नीतियाँ बनाकर परिषदीय शिक्षकों पर थोपने से………

मन की बात :आजकल बेजा बेसिक शिक्षा में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा की चर्चा की बात चल निकली है पर बच्चे के लिए 'शिक्षा अर्जन तनावमुक्त' पर टीचर के लिए 'शिक्षण कार्य तनावयुक्त' होने के साथ शासन के द्वारा पिछले कई वर्षों से नीतियाँ  बनाकर परिषदीय शिक्षकों पर थोपने से………

आजकल बेसिक शिक्षा में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा की चर्चा के क्रम में  बेसिक स्कूलों की तुलना निजी विद्यालयों से की जाती है। मेरी सोच है कि अगर गुणवत्तापूर्ण शिक्षा चाहिए तो हम बेसिक अध्यापकों को भी सख्ती करने दण्ड देने की छूट मिले।

प्राइवेट विद्यालय से तुलना क्यों की जाती है बेसिक विद्यालयों की जब प्राइवेट के प्रवेश के मानक हमारे यहाँ नहीं हैं। निजी स्कूलों में अधिकांश सख्ती और दण्ड बच्चों और अभिभावकों के सम्बन्ध में ही होते हैं और हमारे बेसिक में अधिकांश नहीं समस्त सख्ती और दण्ड अध्यापकों के सम्बन्ध में ही होते हैं । 

निजी स्कूलों में अधिकांशत: पंजिकाओं को तैयार करने सूचना और सूची तैयार करने का काम क्लर्क के जिम्मे और हमारे यहाँ ?? निजी विद्यालयों में टीचर पढ़ाने में अण्डर प्रेशर काम नहीं करता और हमारे यहाँ ???
निजी स्कूलों में टीचर की जवाबदेही शिक्षण गुणवत्ता तक ही और हमारे यहाँ ?? हमारे बेसिक शिक्षा में टीचर की जवाबदेही शिक्षण गुणवत्ता के साथ-साथ अपने क्षेत्र के 6-14 बच्चों का घर-घर जाकर उनकी सूचना तैयार करना और उनका 100 प्रतिशत नामांकन करना, उनकी सन्तोषजनक और नियमित उपस्थित, एम डी एम सामग्री क्रय करना, मीनू के अनुसार उसका निर्माण कराना, बच्चों का हाथ धुला कर एम डी एम वितरण कराना, एम डी एम गुणवत्ता की जिम्मेदारी , विद्यालय उसका परिवेश और शौचालय की साफ-सफाई तथा  सीमित खर्च में उच्च गुणवत्तापूर्ण रंगाई-पुताई एवं पेण्टिंग, बच्चों की साफ-सफाई, अनेकों पंजिका तैयार और अद्यतन करना, अनेकों सूची और सूचना तैयार करना प्राप्त और प्रेषित करना, विभिन्न वित्तीय जिम्मेदारी, ड्रेस वितरण की अनेकों औपचारिकताएं उसकी गुणवत्ता की जिम्मेदारी, न आने वाले और अनियमित बच्चों के गरीब,अशिक्षित गैरजागरूक अभिभावकों से सम्पर्क उनको प्रेरित करने जैसे दुष्कर कार्य की जिम्मेदारी, कई तरह के समितियों के बैठक करवाने और इससे जुड़ी अन्य औपचारिकताओं को पूरा करने की जिम्मेदारी और-क्या-गिनाएं कैसी-कैसी और कितनी जिम्मेदारी  और इनके पूरा न हो पाने पर अधिकारियों के कार्यवाही का तनाव और उस पर भी धरातल की समस्याओं से पूर्णत: अनभिज्ञ ए० सी० में बैठे अधिकारियों के बिना सिर-पैर के नित-प्रतिदिन आने वाले आदेश-निर्देश और शासकीय/अधिकारियों की अपेक्षा।


मैं ये नहीं कहता कि हमारे सौ प्रतिशत टीचरों में अच्छाई या  काबिलियत है पर प्रश्न ये है कि जो अच्छे और काबिल और मेहनती अध्यापक हैं क्या उपर्युक्त स्थित में तनावमुक्त होकर शिक्षण कार्य कर पाएंगे या कर पा रहे हैं । सभी टीचरों को बदनाम करने से पहले या निजी विद्यालयों से तुलना करने से पहले शासन को अपनी नीतियों पर पुनर्विचार करने की आवश्यकता है।

हमारे बहुत से अध्यापक साथी जिसमें मैं स्वयं भी हूँ अपने शिक्षण और केवल शिक्षण दायित्व का गम्भीरतापूर्वक निर्वहन करना चाहते हैं पर उपर्युक्त कार्य-बोझ और तनावपूर्ण स्थित में हमारे सामने किंकर्तव्यविमूढ़ की स्थित बन गई है।

इसी क्रम में शासन द्वारा स्वीकार की गई बेहद काबिल महत्वपूर्ण समिति और उसकी हकीकत की चर्चा न करना बेईमानी होगी । मैं बात कर रहा हूँ विद्यालय प्रबंध समिति की । शासन की कल्पना में जो कि हकीकत से कोसों दूर है। हमारी एस एम सी कागजों में ही सक्रिय और मजबूत स्वीकार की जाती है । यहाँ तक कि यूनीसेफ द्वारा उपलब्ध एस एम सी पंजिका में उसके सदस्यों को विद्यालय न आने वाले और अनियमित बच्चों के अभिभावकों से सम्पर्क और उनको प्रेरित करने की जिम्मेदारी देने की कल्पना की गई है। हंसी आती है ऐसे नीति निर्माताओं की कल्पना पर....जो सदस्य मासिक बैठक में उपस्थित होना समय और पैसे की बर्बादी समझता है वो किसी अनियमित उपस्थित वाले बच्चे के घर क्यों जाएगा। नीति निर्माताओं ने एस एम सी सदस्यों की कल्पना समिति के सदस्य के रुप में कम समाजसुधारक के रुप में ज्यादा की है जो कि अपवाद छोड़ केवल कल्पना में ही सम्भव है ।

ध्यान दें समाज सुधारक सोच अंदर से विकसित होती है सदस्य बनाने मात्र से ऐसी सोच नहीं विकसित होगी। अर्थात् अपवाद छोड़ विद्यालय प्रबंध समिति सभी विद्यालय में पूर्णतः असफल... मतलब शासन की नीति यहाँ भी फेल।

बात चल रही थी शिक्षक जिम्मेदारी और उसके कार्य-बोझ की बताना चाहूंगा यूनीसेफ वालों ने एम डी एम पंजिका तथा एस एम सी बैठक पंजिका तैयार कर प्रत्येक विद्यालय को उपलब्ध कराई है। उसे मानक के अनुसार पूरित करना और उसके प्रत्येक कालम का अक्षरश: अनुपालन करना कार्य-बोझ रुपी समस्या को बढ़ाने का ही काम है।ये पंजिकाएं  शिक्षक तनाव को बढ़ाकर कोढ़ में खाज का काम कर रही हैं ।

मेरा मानना है कि शायद ही कोई बाल मनोवैज्ञानिक इस बात का समर्थन करेगा कि बच्चे के लिए शिक्षा अर्जन तनावमुक्त पर टीचर के लिए शिक्षण कार्य तनावयुक्त हो ....इतने कार्यबोझ और तरह-तरह की सरकारी मानकों की अपेक्षाओं और  उनके पूर्ण न होने पर कार्यवाही और दण्ड या उसकी धमकी/चेतावनी जांच/निरीक्षण जैसे तनावपूर्ण स्थित में अपवाद को छोड़ कोई अध्यापक शिक्षण में अपना बेहतर परिणाम नहीं दे सकता ये मेरा दावा है।

शिक्षा में दण्ड और शिक्षण गुणवत्ता : मैं तुलनात्मक रुप से बच्चों के दण्ड का समर्थन करता हूँ पर उस सीमा तक जहाँ तक वो क्रूरता की श्रेणी में न आ जाए। दण्ड का अपना एक महत्व होता है । मैं उस दण्ड विरोधी बाल मनोवैज्ञानिक या अधिकारी से पूछना चाहता कि क्या उन्हें विद्यार्थी काल में दण्ड नहीं मिला था....अपवाद छोड़ निश्चित ही मिला होगा तो क्या वो सफल नहीं हुए बिल्कुल हुए नहीं तो मनोवैज्ञानिक या अधिकारी या फिर उच्च पदों पर नहीं पहुंचे होते। दूसरी बात क्या ऐसे मनोवैज्ञानिक और अधिकारी घर पर अपने बच्चों को गलती करने पर नहीं डांटते अपवाद छोड़ सभी डांटते हैं तो फिर अपने औपचारिक सुझाव एवं संस्तुति में अपनी दोहरी सोच का प्रदर्शन क्यों करते हैं। निष्कर्षत: कहा जा सकता है बच्चों के सन्दर्भ में शासन की दण्ड नीति भी पूर्णतः फेल।

शिक्षण गुणवत्ता को प्रभावित करने के कारणो में बाल मनोवैज्ञानिकों के सुझावों को आवश्यकता से अधिक महत्व देना भी शामिल है। परीक्षा में अनिवार्य रुप से उत्तीर्ण करने और बच्चे के दण्ड का  पूर्णतः रोक कहीं न कहीं बाल मनोवैज्ञानिकों को अत्यधिक महत्व देने के कारण हुआ जो शिक्षण गुणवत्ता को काफी हद तक प्रभावित कर रहा है।

आज गुणवत्तापूर्ण शिक्षण के जगह कागजी दस्तावेजी औपचारिकताओं पर ज्यादा जोर है ...इस पर विचार करने की जरूरत है कि क्या कागजी औपचारिकताएं  शिक्षण गुणवत्ता में बाधक हैं, मेरी नजर में बिलकुल बाधक हैं । पंजिकाओं, सूची और सूचना,फाइल तैयार और अद्यतन पूरित करने के तनाव और व्यस्तता में किसी भी शिक्षक के लिए तनावमुक्त होकर गुणवत्तापूर्ण शिक्षण कार्य करना असम्भव नहीं तो मुश्किल जरूर है।

तथ्य ये है कि सभी शिक्षकों में न सही पर फिर भी अधिकांश शिक्षकों में  गुणवत्ता की फिक्र है वो गुणवत्ता देना चाह रहा है पर शासन की नीतियों में बहुत सी गड़बड़ीयां हैं जिसके कारण अपवाद छोड़ दिया जाए तो जो शिक्षक गुणवत्ता देना चाहता है वो भी तनावमुक्त होकर गुणवत्ता नहीं दे पा रहा है । ध्यान दें अपवाद पर सिद्धांत,मानक और नीतियां नहीं बनाई जातीं अपवाद,अपवाद ही होता है और अगर अपवाद को मानक बता नीतियां बनेंगी तो उनका फेल होना तय है।

         दुर्गेश चन्द शर्मा जी
            की कलम से
         जनपद-महराजगंज

        || जय शिक्षक जय भारत ||

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