एनीमिया से पूरी तरह नहीं लड़ पा रहा मिड-डे मील : इलाहाबाद के एक संस्थान के शोध में निकला यह निष्कर्ष ; विशेषज्ञों ने नैनी इलाके के आठ स्कूलों की पांच से 16 वर्ष तक की 500 लड़कियों पर किया अध्ययन
इलाहाबाद : आठवीं कक्षा तक के सरकारी स्कूलों में दिया जाने वाला मध्यान भोजन (एमडीएम) भी एनीमिया से पूरी दमदारी से नहीं लड़ पा रहा है। सैम हिग्गिनबॉटम इंस्टीट्यूट ऑफ एग्रीकल्चर, टेक्नोलॉजी एण्ड साइंसेज (शियाट्स) के विशेषज्ञों की अध्ययन रिपोर्ट बताती है कि एमडीएम लेने वाली लड़कियां भी एनिमिक हैं हालांकि अध्ययन में इनकी सेहत एमडीएम न लेने वाली प्राइवेट स्कूल की लड़कियों की अपेक्षा बेहतर मिली है।
संस्थान के विशेषज्ञों ने नैनी इलाके के आठ स्कूलों की पांच से 16 वर्ष तक की 500 लड़कियों पर अध्ययन किया। इनमें से चार एमडीएम वाले सरकारी और अन्य चार बिना एमडीएम वाले प्राइवेट स्कूल थे।
रिपोर्ट में एमडीएम लेने वाली लड़कियों में हीमोग्लोबिन का औसत 8.3 ग्राम जबकि नान एमडीएम में हीमोग्लोबिन आठ प्रतिशत रहा। एमडीएम लेने वाली 28.4 प्रतिशत लड़कियों में एनिमिया का स्तर न्यून स्तर पर था जबकि नान एमडीएम में ऐसी लड़कियों की संख्या 24.8 प्रतिशत पाई गई।
इन्होंने किया अध्ययन: शियाट्स के स्कूल ऑफ होम साइंस के डिपार्टमेन्ट ऑफ फूड्स एण्ड न्यूट्रिशन के डीन रही प्रो. एआर कुमार ने यह अध्ययन अपने शोधार्थी पूनम यादव के साथ मिलकर किया।
खबर साभार : हिन्दुस्तान
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