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एक छत के नीचे 'प्राइमरी का मास्टर' से जुड़ी शिक्षा विभाग की समस्त सूचनाएं एक साथ

सरकारी स्कूलों के बच्चे नये सत्र से सही राष्ट्रगान पढ़ेंगे : सरकारी स्कूलों की पुस्तकों में अब ‘सिंधु’ के स्थान पर छपेगा ‘सिंध’

सरकारी स्कूलों के बच्चे नये सत्र से सही राष्ट्रगान पढ़ेंगे : सरकारी स्कूलों की पुस्तकों में अब ‘सिंधु’ के स्थान पर छपेगा ‘सिंध’

कानपुर। राजकीय प्रकाशक की पुस्तकों के पिछले पृष्ठ पर अभी तक प्रकाशित हो रहे राष्ट्रगान में ‘सिंधु’ शब्द के स्थान पर अब ‘सिंध’ शब्द रहेगा। प्रदेश के सरकारी और सहायता प्राप्त प्राथमिक व जूनियर स्कूलों के करीब सवा दो करोड़ बच्चों को मिलने वाली नि:शुल्क पुस्तकों में सालों से राष्ट्रगान में ‘सिंधु’ शब्द छपता आ रहा है। सर्व शिक्षा अभियान के पाठ्यपुस्तक अधिकारी कार्यालय से बताया गया है कि 15 जून के बाद से आ रही नई पुस्तकों के पीछे वाले पृष्ठ पर अब संशोधित राष्ट्रगान रहेगा।

राज्य शिक्षा संस्थान ने वर्ष 2014 में प्रमाण सहित सिंधु के स्थान पर सिंध करने का प्रस्ताव पाठ्यपुस्तक अधिकारी को भेजा था। प्रस्ताव में भारत सरकार के प्रकाशन विभाग की ओर से ‘भारत-2014’ का हवाला दिया गया था, जिसमें सही राष्ट्रगान छपा है। इससे पहले वर्ष 2009 में पुस्तकों की समीक्षा के दौरान चर्चा में आए सुधार के प्रस्ताव पर राज्य शैक्षिक अनुसंधान परिषद (एससीईआरटी) ने इस बाबत प्रमाण मांगे थे। उस समय भी ‘सिंधु’ के स्थान पर ‘सिंध’ शब्द होने के प्रमाण दिए गए थे परंतु संशोधन न हो सका। शिक्षा विभाग की ओर से रिकार्ड की जांच करने पर 2001 से त्रुटिपूर्ण राष्ट्रगान प्रकाशित किए जाने की पुष्टि हुई है।

          राष्ट्रगान से जुड़े तथ्य;-

24 जून, 1919 को कांग्रेस के कोलकाता अधिवेशन में गीत को बंगाली व हिन्दी में गाया गया था।
पहली बार यह गान वर्ष 1932 में ब्रह्म समाज की पत्रिका ‘तत्ववोधिनी’ में प्रकाशित हुआ था।
गुरुदेव टैगोर ने इसे बांग्ला भाषा में रचा था।
गुरुदेव रवींद्र नाथ टैगौर के इस गान को 24 जून, 1950 की संविधान सभा में राष्ट्रगान के रूप में स्वीकार किया था।
मूल गान में कुल पांच पद हैं परंतु उसे वर्तमान स्वरूप में ही राष्ट्रगान के रूप में स्वीकार किया गया।
राष्ट्रगान के गायन में कुल 52 सेकेंड का समय लगता है।

      खबर साभार : दैनिकजागरण

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