उत्तर प्रदेश : क्या बदलेगी प्राथमिक स्कूलों की स्थिति?“प्रदेश सरकार प्राथमिक स्कूलों में उलब्ध सुविधाओं और कमियों की मैपिंग कराने जा रही है. ताकि बुनियादी शिक्षा की……………
उत्तर प्रदेश के सरकारी स्कूलों के हालात जानने (मैपिंग) की तैयारियां हो रही हैं. ताकि स्कूलों की वास्तविक स्थिति का मूल्यांकन किया जा सके. इससे पता चलता है कि राज्य सरकार भविष्य में शिक्षा के अधिकार कानून को लागू करने की तैयारियां कर रही हैं.
इस संदर्भ में हर राज्य को एक समय-सीमा दी गई थी ताकि शिक्षा के अधिकार कानून को लागू करने के लिए वो सभी आवश्यक तैयारियां पूरी कर सकें.
मसलन प्रत्येक स्कूल में पर्याप्त कमरे हो, किचन शेड हो, शौचालय हो और खेल का मैदान हो. इसके साथ-साथ वहाँ पर छात्र-शिक्षक अनुपात भी सही हो. ताकि छह से चौदह साल की उम्र के बच्चों को उनका अधिकार मिल सके. उत्तर प्रदेश में प्राथमिक शिक्षा के प्रति उदासीनता की बात किसी से छिपी नहीं है. शिक्षा के अधिकार कानून को आगामी अप्रैल में चार साल पूरे हो जाएंगे. चार सालों में नियुक्तियों का मामला अटका पड़ा है. इसके अलावा शिक्षकों के प्रशिक्षण और पाठ्यपुस्तकों में बदलाव के तमाम प्रयासों में नवाचारों की कमी दिखाई देती है.
बड़ी कक्षाओं के छात्र-छात्राओं को तो लैपटॉप वितरित किए जा रहे हैं लेकिन प्राथमिक शिक्षा को लेकर गंभीरता से नहीं सोचा जा रहा है. हाल क् दिनों में कुछ संकेत मिले हैं कि सूबे की सरकार प्राथमिक शिक्षा के प्रति उदासीनता और उपेक्षा वाले रवैये में थोड़ा बदलाव कर रही रहै. दैनिक जागरण में 30 दिसंबर को छपे संपादकीय में लिखा है, “प्रदेश सरकार प्राथमिक स्कूलों में उलब्ध सुविधाओं और कमियों की मैपिंग कराने जा रही है. ताकि बुनियादी शिक्षा की स्थिति को सामने लाया जा सके.”
संपादकीय में मैपिंग के साथ-साथ भविष्य की रणनीति तैयार करने पर भी जोर दिया गया है. ताकि पढ़ाई-लिखाई बेहतर माहौल बने और प्राथमिक शिक्षा के मौजूदा ढाँचे में सुधार की संभावनाएं तलाशी जा सकें. देश स्तर पर देखा जाय तो प्राथमिक शिक्षा में राजस्थान, महाराष्ट्र, गुजरात जैसे राज्य काफ़ी प्रयास कर रहे हैं ताकि बच्चों का नामांकन, ठहराव, गुणवत्ता के स्तर में व्यापक सुधार किया जा सके. लेकिन उत्तर प्रदेश सरकार इस मामले में पिछड़ती सी दिख रही है. ज़्यादातर मैपिंग में भौतिक सुविधाओं पर विशेष ध्यान दिया जाता है. लेकिन स्कूलों में सुधार की कोई भी योजना केवल भौतिक सुविधाओं की स्थिति अच्छी करने तक सीमित नहीं हो सकती.
इसका संबंध शिक्षकों को मिलने वाली उचित ट्रेनिंग और बदलते माहौल के अनुरूप पढ़ाने के लिए तैयारी से भी जोड़कर देखा जाना चाहिए. पाठ्यपुस्तकों को भी समकालीन बनाने और शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार की तमाम योजनाओं को भी शामिल किया जाना चाहिए. ताकि स्कूलों में सीखने-सिखाने का अच्छा माहौल बने. शिक्षक पढ़ाने के काम में रुचि लें. बच्चों का विभिन्न विषयों में प्रदर्शन बेहतर हो और खेल जैसी गतिविधियों को भी प्रोत्साहन मिले.
आभार : शिक्षा,समाज और मीडिया
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