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"मन की बात" : लोकतंत्र में बहुमत व अल्पमत व्यवस्था के परिणाम भी अलग-अलग होते हैं परन्तु बच्चे की शिक्षा को प्रभावित करने वाले चार कारकों में से शिक्षक केवल अकेला बचता है।जो अल्पमत में होने के कारण चाह कर भी……………

लोकतंत्र में बहुमत व अल्पमत व्यवस्था के परिणाम भी अलग-अलग होते हैं परन्तु बच्चे की शिक्षा को प्रभावित करने वाले चार कारकों में से शिक्षक केवल अकेला बचता है।जो अल्पमत में होने के कारण चाह कर भी……………

☆ शिक्षा के लोकतन्त्र में अल्पमत परिषदीय शिक्षक सरकार ☆

हम सभी लोकतांत्रिक व्यवस्था में बहुमत के महत्व से भलीभाँति परिचित है । लोकतंत्र में बहुमत व अल्पमत व्यवस्था के परिणाम भी अलग-अलग होते हैं। जब कोई व्यवस्था बहुमत में होती है तो उसे अपने कार्य क्षेत्र के हित के लिए निर्णय लेने और उसे परिणाम तक पहुँचाने में आसानी होती है। लेकिन जब व्यवस्था अल्पमत में होती है। तब न निर्णय लेने का अधिकार बचता है और न ही किसी लक्ष्य तक पहुंचने में सभी का सहयोग मिलता है। अधिकार मिल भी जाए तो उसे परिणाम तक पहुँचाना बहुत मुश्किल काम होता है।यही बहुमत और अल्पमत व्यवस्था का अन्तर प्राइवेट और सरकारी कार्य क्षेत्रों में देखने को मिलता है। शायद यही एक अन्तर है जो प्राइवेट शिक्षा व्यवस्था के शिक्षक और सरकारी शिक्षा व्यवस्था के शिक्षक में अन्तर है।

आपको लग रहा होगा कि ये शिक्षक अल्पमत और बहुमत में कैसे होता है। तो आइए आपको समझाता हूँ।

किसी भी बच्चे की शिक्षा को प्रभावित करने वाले चार कारक होते हैं ।
1- बच्चे का परिवार
2- बच्चे का परिवेश
3- बच्चे के शिक्षक
4- बच्चे के मित्र।

ये चारों स्थितियां यदि बच्चों के अनुकूल हों तो गुणवत्ता पूर्ण शिक्षा की बात की जा सकती है। उन्नतशील विद्यालयों के बच्चों की ये चारों स्थितियां अनुकूल होती है या अनुकूल स्थिति वाले बच्चों को ही अपने यहाँ प्रवेश देती हैं। परन्तु परिषदीय विद्यालयों में बच्चा , परिवार ,परिवेश और बच्चे के मित्र क्या परिषदीय शिक्षक के सहयोगी हैं। क्या शिक्षक अकेले बिना सभी के सहयोग परिणाम बदलने में सक्षम है। परिषदीय शिक्षक खूब अच्छे प्रयास करे फिर भी उसे वह परिणाम प्राप्त नहीं हो पाते जो एक प्राइवेट स्कूल के बच्चे में प्राप्त हो जाते हैं।

बच्चे की शिक्षा को प्रभावित करने वाले चार कारकों में से शिक्षक केवल अकेला बचता है।जो अल्पमत में होने के कारण चाह कर भी अपनी कर्मठ और परिणाम दायी छवि को प्राप्त नहीं कर पाता है और अन्त में वही हाल होता है जो एक अल्पमत सरकार का होता है । लेकिन अपवाद स्वरूप अल्पमत सरकार भी सफल परिणाम दायी होती हैं यदि गठबंधन में शामिल सभी दल अपनी सरकार समझ कर सरकार के सहयोगी बने।

ठीक इसी प्रकार यदि बच्चे के अभिभावक का परिवार और परिवेश शिक्षक के प्रति सहयोगी भाव रखें तथा शिक्षक भी अपनी क्षमताओं का उपयोग कर अपने बच्चों के समान सहयोगात्मक भाव रखें और बच्चों को अच्छे मित्रों के लिए प्रेरित करें तो शिक्षा गुणवत्ता पूर्ण हो सकती है। जैसे गाँव का अभिभावक प्राइवेट स्कूलों के लिए अपने परिवार और परिवेश की विचारधारा को बदल कर सहयोगी बनता है।वही बच्चा जब तक परिषदीय विद्यालय का विद्यार्थी था तब तक अभिभावक को बच्चे के लिए और विद्यालय के लिए समय नहीं था। कारण शायद निःशुल्क शिक्षा के अन्तर्गत शिक्षक के अधिकारों का अल्पमत होना ही है।जिससे अल्पमत सरकार बचाने की तरह शिक्षक अपनी नौकरी बचाने के प्रयास में लगा रहता है।

यदि विद्यालय में शिक्षक के अधिकारों की बात करें, तब भी तीन कारक प्राप्त होते हैं जिसमें--
1- अधिकारी
2- अभिभावक
3- शिक्षक।

यहाँ भी अधिकारी, अभिभावक दोनों अध्यापक पर भारी है । जिसमें केवल शिक्षक की ही सारी जिम्मेदारी है। इसीलिए कहते हैं कि शिक्षा के लोकतन्त्र में अल्पमत परिषदीय शिक्षक की कार्य क्षेत्र में लाचारी है । अतः आने वाले समय में हम शिक्षकों को भी पूर्ण बहुमत की अपने विद्यालय में सरकार गठन का मौका दिया जाए।जिससे अपने शिक्षण कार्य को परिणाम तक पहुँचाया जा सके। इसके लिए विद्यालय की गठबन्धन सरकार में सभी सहयोगी सामिल होकर निम्नवत व्यवस्था में सहभागी बनें।
जैसे --
1- बच्चे का भोजन, कपड़ा, बस्ता और विद्यालय में बच्चों की उपस्थिति का मंत्रालय अभिभावकों को।
2- विद्यालय व्यवस्था मंत्रालय सम्मानित खण्ड शिक्षा अधिकारी महोदय को। जिसमें भवन निर्माण मरम्मत रंगाई पुताई और निरीक्षण आदि गैर शैक्षणिक कार्य।
3- शिक्षण और प्रशिक्षण मंत्रालय अध्यापक को।
4- विद्यालय का रक्षा मंत्रालय प्रबन्ध समिति को।
5- विद्यालय की सम्पूर्ण गतिविधियों की गुणवत्ता मंत्रालय प्रधानाध्यापक को दिया जाए ।

"तभी अल्पमत शिक्षक सरकार गुणवत्तापूर्ण परिणाम देने में सक्षम हो सकती है।"

सत्यमेव जयते ।
|| जय शिक्षक जय भारत ||
~भाई विमल कुमार की कलम से कानपुर देहात
~के द्वारा भाई महेन्द्र कुमार पटेल जी

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