अयोग्य शिक्षकों के हाथों में शिक्षा कीबुनियाद : किसी भी देश की शिक्षा व्यवस्था वहां की संस्कृति व प्रगति के अनुरूप होनी चाहिए
किसी भी देश की शिक्षा व्यवस्था वहां की संस्कृति व प्रगति के अनुरूप होनी चाहिए। क्योंकि शिक्षा न केवल आर्थिक व्यवस्था की रीढ़ होती है, बल्कि वह उसके सामाजिक चिंतन की बुनियाद, सांस्कृतिक बनावट की समझ व राजनीतिक प्रतिष्ठा का परिचायक भी होता है। जिसे ध्यान में रखकर ही सरकार शिक्षा पर पानी की तरह पैसा बहाती है। इसके बावजूद शिक्षा की बदहाली एक बड़ी चुनौती बनती जा रही है। जहां प्राथमिक शिक्षा बदहाल है, वहीं उच्च शिक्षा की स्थिति उससे भी बदतर है। 75 फीसद छात्रों की उपस्थिति की बात भी संचिकाओं तक सीमित है।
प्राथमिक शिक्षा का हाल बेहाल :
जिले में प्राथमिक शिक्षा के गिरते स्तर से अब अभिभावक भी चिंतित होने लगे हैं। पढ़ाई के नाम पर खानापूर्ति हो रही है। वहीं शिक्षक पढ़ाने से ज्यादा गैर शैक्षणिक कार्यो में लगे रहते हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में शिक्षा का सच यह है कि उन विद्यालयों में पढ़ाने वाले सरकारी शिक्षक खुद अपने बच्चों को उस विद्यालय में न पढ़ाकर निजी विद्यालयों में पढ़ा रहे हैं। जांच के क्रम में विद्यालयों में बच्चों की उपस्थिति पंजी में कुछ और व वर्ग कक्षों में कुछ और देखी जाती है। जानकारों की माने तो मध्याहन भोजन योजना बंद हो जाए तो बच्चों की उपस्थिति की कलई खुल जाएगी।
फर्जी व अयोग्य शिक्षकों के भरोसे व्यवस्था : योग्य शिक्षकों का अभाव व फर्जी प्रमाण पत्रों के आधार पर बहाल शिक्षकों का बोझ भी ढोने को मजबूर शिक्षा विभाग बाहर से हसीन और अंदर बिगड़ी मशीन की कहावत को चरितार्थ कर रहा है।
परीक्षा संचालन पर भी सवाल :
प्राथमिक स्तर पर चौपट हो रही शिक्षा व्यवस्था भविष्य के कर्णधारों को घोर अंधकार में धकेल रही है। उसका परिणाम भी दिखने लगा है। तीन माह पूर्व आयोजित मैट्रिक की परीक्षा में पराकाष्ठा पर पहुंची नकल की घटना ने शर्मसार करने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। उत्तर पुस्तिकाओं की जांच में भी गड़बड़ी होने का आरोप कई बार प्रमाणित हो चुका है। इसका दंश मेधावी छात्रों को भी झेलना पड़ता है। गत वर्ष तो कापी की दुबारा जांच की गई थी। जिसके बाद बड़ी संख्या में फेल छात्रों को दुबारा उत्तीर्ण किया गया।
छात्रों से अधिक छात्राएं नामांकित :
हालांकि सरकारी आंकड़ों पर गौर करे तो प्राथमिक व मध्य विद्यालयों में छह से दस आयु वर्ग के बच्चों की संख्या 3,66,952 है जिनमें 1,81,899 बालक व व 185053 बालिका है। इसी तरह 11 से 13 आयु वर्ग के छात्रों की संख्या 1,78,461 है जिनमें 86,894 बालक व 91567 बालिका है। गौरतलब है कि दोनों ही आयु वर्ग में बालकों से बालिकाओं की संख्या अधिक है।
शिक्षकों की कमी : जिले में छात्रों की संख्या के अनुरुप शिक्षकों की कमी है। जिले में कुल नामांकित 5,45,316 छात्रों के लिए गत वर्ष तक 10,655 शिक्षक कार्यरत थे। वर्तमान में छात्र-शिक्षक अनुपात 51.1 है। जबकि मानक अनुपात 40.1 होना चाहिए। यानी अभी भी तीन हजार शिक्षकों की कमी प्राथमिक शिक्षा में बनी हुई है। छात्रों के लिए चलाई जा रही मध्याहन भोजन, पोशाक, छात्रवृत्ति व साइकिल योजना पर करोड़ों रुपये खर्च करने के बाद भी शिक्षा की गुणवत्ता में दिनों दिन गिरावट आना चिंता का विषय बना हुआ है। जिले में कुल 188 हाई स्कूलों में कार्यरत 1624 शिक्षकों का प्रयास भी व्यर्थ जा रहा है।
उच्च शिक्षा में भी गिरावट : उच्च शिक्षा की बात करें तो वहां स्थिति और दयनीय है। जिले में कुल आठ अंगीभूत व 25 वित्त रहित कालेज चल रहे हैं। जहां की शिक्षा व्यवस्था शिक्षकों की कमी, हड़ताल व प्रबंधन की खींचतान की भेंट चढ़ रही है। मुख्यमंत्री द्वारा सासाराम में इंजीनिय¨रग कालेज खोलने की घोषणा के काफी समय बीत जाने के बावजूद कालेज अभी मूर्तरूप लेता नहीं दिख रहा, जबकि महाविद्यालयों में अभी भी कई विषयों में स्नातकोत्तर की पढ़ाई नहीं हो रही है। हालांकि एसपी जैन कालेज में बीएड की पढ़ाई शुरू होने व कुंवर सिंह विश्वविद्यालय का शाखा खोलने की घोषणा से लोगों को कुछ राहत महसूस हुई है।
कहां है गतिरोध :
* जिले में प्राथमिक से लेकर उच्च शिक्षण संस्थानों में शिक्षकों की कमी।
*शिक्षा के प्रति अभिभावकों की पुरानी सोच।
* पुराने ढर्रे पर चल रही शिक्षण व्यवस्था
* वरीय पदाधिकारियों का मानेट¨रग का अभाव।
* सर्व शिक्षा अभियान पर की जा रही खर्च में जांच व मानेट¨रग का अभाव।
सुझाव :
* योग्य शिक्षकों की बहाली कर शिक्षकों की कमी पूरी की जाए।
* नकल पर लगाम के लिए अभिभावकों के बीच जागरूकता अभियान चलाया जाए।
* शिक्षा में गुणात्मक सुधार के लिए सीबीएसई व निजी विद्यालयों से सीख ली जाए।
* वरीय पदाधिकारियों की निगरानी में सर्व शिक्षा अभियान की राशि का मानक के अनुसार सदुपयोग किया जाए।
खबर साभार : दैनिकजागरण
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