एक रचनात्मक शिक्षक अपनी तरफ़ से भी तमाम चीज़ें करने की कोशिश करते हैं। राजस्थान के एक स्कूल में भाषा पढ़ाने वाले शिक्षक अपनी कक्षा में कहानियों की किताबें लेकर जाते। वे सभी बच्चों…………
शब्दों की दुनिया इतनी आकर्षक क्यों है? लिखे हुए शब्दों में इतना आकर्षण क्यों होता है? इस तरह के सवाल छपे या लिखे हुए शब्दों के ‘जादू’ की तरफ़ हमारा ध्यान आर्कषित करते हैं। स्कूलों में कहानी की किताबों के प्रति बच्चों का लगाव देखने का मौका मिला। उससे पता चला कि शब्दों की दुनिया भी किसी जादू की तरह है, जो बच्चों को अपनी तरफ़ खींचती है। मैजिक ऑफ़ रिटेन वर्ड का अर्थ है लिखित शब्दों को पढ़ने से हासिल होने वाला आनंद। स्कूल में बच्चों को कहानियों की किताबों को पढ़ते और अध्यापकों से किताबें देने की मांग करते बच्चों को देखना अद्भुत अनुभव था।
इस माहौल को देखकर लगा कि अगर बच्चे पढ़ना सीख लेते हैं तो उनके लिए किताबों से दोस्ती करना आसान हो जाता है। पढ़ना- लिखना सीखने की प्रक्रिया में पाठ्यपुस्तकों की एक महत्वपूर्ण भूमिका है। इससे शिक्षकों को भी किसी पाठ को पढ़ाते समय एक दिशा मिल जाती है। अध्यापक किसी पाठ के पीछे दिए गए निर्देशों से लाभ उठा सकते हैं। जैसे कि इस पाठ को किस तरीके से पढ़ाना है? उसके लिए क्या संभावित गतिविधियां हो सकती हैं? इस पाठ को बच्चों को अनुभवों से कैसे जोड़ने में मदद की जा सकती है?इसके अलावा पाठ को ध्यान में रखते हुए किस तरह की कहानी, कविता या कोई तस्वीर इस्तेमाल में लाई जा सकती है, इसकी भी जानकारी उनको मिलती है।
एक रचनात्मक शिक्षक अपनी तरफ़ से भी तमाम चीज़ें करने की कोशिश करते हैं। राजस्थान के एक स्कूल में भाषा पढ़ाने वाले शिक्षक अपनी कक्षा में कहानियों की किताबें लेकर जाते। वे सभी बच्चों को एक-एक किताबें पढ़ने के लिए देते। वापसी के समय सारी किताबें इकट्ठा करके लाते। अगले दिन फिर बाकी किताबें देने की बात कहते। वे किताबें देने से पहले वे बच्चों को पाठ पढ़ाते। सभी बच्चों का होमवर्क चेक करते और कॉपी में क्या लिखा है, उसको पढ़ने के लिए कहते। इस तरह का माहौल एक भाषा की कक्षा को जीवंत बना सकता है। इस कक्षा की सबसे ख़ास बात थी कि इसमें हर बच्चे की भागीदारी होती थी। अध्यापक हर बच्चे की क्षमताओं और स्तर के बारे में व्यक्तिगत रूप से जानते थे।
इसके अलावा वे बच्चों को पढ़ाते समय कोई बात समझाने के लिए स्थानीय बोली ‘बागड़ी’ के शब्दों के इस्तेमाल करते थे। इससे बच्चों को स्थानीय परिवेश के संदर्भ में चीज़ों को समझने में मदद मिलती थी। उनकी एक और ख़ास बात थी कि पढ़ाई के दौरान बीच-बीच में वे बच्चों से बाकी बच्चों के बारे में भी पूछा करते थे कि अमुक छात्र आज क्यों नहीं आया? घर पर खेती-बारी का काम कैसा चल रहा है? कोई छात्र जो कल स्कूल नहीं आया था क्या कर रहा था? इस तरह के सवालों से बच्चों का उनके साथ लगाव बना रहता था। छोटी कक्षा के बच्चों को पढ़ाने की उनकी तैयारी भाषा की अच्छी कक्षा के अनेक बिंदुओं को अपने आप में समाहित करती है।
~द्वारा शिक्षा,समाज और मीडिया
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