शिक्षक बैठकों से बढ़ता है आत्मविश्वास !आज तीव्र आवश्यकता है उस "पारम्परिक मासिक बैठक" के पुनर्जागरण की जिससे प्रत्येक शिक्षक के सुख दुःख में हम सब समवेत रूप में सहभागी बने, जिससे…………
मित्रों जैसा कि हम सब जानते हैं कि हमारी प्रत्यक्ष मुलाकात और बैठकें आपसी सम्बन्धों को और विश्वास को मजबूत व ठोस आधार प्रदान करती हैं, तथा हमारी संगठनात्मक शक्ति और आत्मविश्वास को मजबूत बनाती है।
एक समय था जब हम शिक्षक साथी मासिक ब्लाक या जनपद की बैठक में शामिल होकर एक दूसरे से परिचित होते थे, जहाँ हमें अपने बड़े व अनुभवी शिक्षक भाई / बहिनों के विचार सुनने को मिलते थे। उनके जीवन का प्रत्यक्ष अनुभव हम सब को कुछ न कुछ सीखने और सिखाने को सोचने पर मजबूर कर देता था। एक दूसरे की समस्याएं खुली बैठक में परस्पर सामने आती थी। उस बैठक में शैक्षिक और प्रशासनिक मसलों पर अधिकारी और अध्यक्ष दोनों पक्ष उपस्थित होकर उनका निराकरण करते थे। जहां भ्रष्टाचार और दलाली जैसे कार्य करने वाले पक्ष अपनी पोल खुलने के भय से और सामूहिक अपमान से भयभीत रहते थे, वहीं समूह की शक्ति से कमजोर से कमजोर आम शिक्षक अपनी बात कह लेता था और आवश्यकता पड़ने पर एक आवाज में एक-एक शिक्षक एकत्रित हो जाते थे। इन्हीं बैठकों से कुशल नेतृत्व व क्षमतावान शिक्षक साथी निकल कर बाहर आते थे, जिससे शिक्षा एवं शिक्षक के हित और सम्मान की जागरूकता फैलती थी।
परन्तु कुछ वर्षों से शासन और अधिकारियों की ये नीति बन गई कि शिक्षक आज आपस में मिलने पहचानने के लिए तरस गया है। (वो तो भला हो इस स्मार्टफोन टेक्नोलॉजी का कि कुछ सम्बन्ध प्राणवायु पा के पुनर्जीवित हो रहे) जिसका नतीजा ये हुआ कि हर छोटे बड़े काम के लिए शोषण होने लगा। हमारी जायज़ माँगो को मनवाने या नाज़ायज़ शोषण के विरोध के लिए भी साथी एकमत नही हो पा रहे। आज स्थिति ये हो गई है कि एक ही न्याय पंचायत में यदि कोई शिक्षक परेशान किया जाता है तो वह अपनी बात तक किसी को नहीं बता पा रहा है क्योंकि वह अधिकतर शिक्षकों को पहचानता ही नहीं है। वहाँ के अन्य शिक्षक भी नहीं जान पाते हैं कि कौन क्यों परेशान किया गया। जिससे प्रत्येक शिक्षक भयभीत होकर व्यक्तिगत बचाव के रास्ते खोजने लगा।
नतीजा यह निकला कि आज अध्यापक के शोषण का एक बहुत बड़ा सिस्टम विकसित हो गया। अधिकारी अपने हित के उचित व अनुचित आदेश अध्यापकों को मौखिक ही फोन पर थमाने लगे किन्तु अध्यापक की सही बात भी अनसुनी की जाने लगी। उसे सरकारी आदेश तो जबरन रिसीव करवा दिए जा रहे किन्तु उसके मैटरनिटी लीव, मेडिकल लीव, अन्य आवेदन की रिसीविंग नही मिलती और दोहन का मार्ग प्रशस्त किया जाने लगा। हमारा संगठनात्मक पक्ष भी लगातार मौन स्वीकृति प्रदान कर स्वयं के बचाव और लाभ के रास्ते ढूँढता नजर आने लगा।
लेकिन फिर भी पाँचों उंगलियां बराबर नहीं होती हैं हमारे बहुत से शिक्षक और संगठन के पदाधिकारी भाई आज भी शोषण सिस्टम के खिलाफ लड़ते नजर आते हैं या प्रयासरत हैं लेकिन परिस्थितियों के आगे वे भी बेबस व लाचार दिखाई देते हैं । जो समय समय पर अपनी पीड़ा उजागर भी कर देते हैं। उन्हें सही बात को कहने के लिए , गलत के विरोध के लिये समर्थकों का पर्याप्त संख्याबल नही मिलता। हम आम शिक्षकों का भी यह दायित्व बनता है कि हम सब मिलकर अपने सहयोग और सम्मान के लिए प्रयासरत भाईयों का साथ दें।
आज के कई युवा साथी अनभिज्ञ, अपरिचित हैं प्रौढ़ साथियों से जबकि युवा उन साथियों के अनुभवों से लाभ प्राप्त कर अनावश्यक के उत्पीड़न से बच सकते हैं। जिसके लिए संगठन के सहयोगी पदाधिकारियों को पुनः पुरानी व्यवस्था को बहाल कर व्लाक स्तरीय मासिक बैठक अधिकारी और अध्यक्ष दोनों पक्षों की उपस्थिति में कराने का प्रयास करना चाहिए। जहाँ से पुनः शिक्षा एवं शिक्षक के हित और सम्मान के लिए नयी ऊर्जा और विचारों का प्रवाह शुरू हो सके। उपर्युक्त कार्य हमारी कार्यक्षमता और सम्मान दोनों की रक्षा कर सकते हैं।
आज तीव्र आवश्यकता है उस पारम्परिक मासिक बैठक के पुनर्जागरण की जिससे प्रत्येक शिक्षक के सुख दुःख में हम सब समवेत रूप में सहभागी बने, जिससे सभी अध्यापकों की समस्याएं, सूचनाएं और विचार एक पटल पर आ सकें।
हमारे नेतृत्व पक्ष को खुलकर अधिकारी और अपने नेतृत्व के सामने अपनी बात रखनी चाहिए। इसलिए एक बार पुनः शिक्षा एवं शिक्षक के हित और सम्मान के लिए शिक्षक संघ के पदाधिकारियों से ये निवेदन है कि आप सम्मिलित प्रयास कर उक्त परम्परा को पुनः जागृत कर लागू कराएं।
|| जय शिक्षक जय भारत ||
~विमल कुमार कानपुर देहात की कलम से
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