सरकार ने सूचना आयोग की प्रस्तावित नियमावली लौटा;अब विस्तृत सूचनाएं मांगने की मंशा नहीं हो सकेगी पूरी : आरटीआई के तहत सूचना मांगने की शब्द सीमा होगी पांच सौ
√सरकार ने सूचना आयोग की प्रस्तावित नियमावली लौटाई
√कई प्रस्तावित प्रावधानों में संशोधन की जरूरत बताई गई
लखनऊ। सूचना के अधिकार के तहत अब विस्तृत सूचनाएं मांगने की मंशा पूरी नहीं हो सकेगी। राज्य सूचना आयोग की प्रस्तावित नियमावली में सरकार ने संशोधन करके सूचना मांगने के लिए पांच सौ शब्दों की सीमा तय करने का सुझाव दिया है। आयोग को बताया गया कि केंद्र सरकार ने अपने जुलाई 2012 के नियम में पांच सौ शब्दों की अधिकतम सीमा एक आवेदन पत्र में रखी है। ऐसा प्रावधान महाराष्ट्र सरकार ने भी कर रखा है। सरकार का मानना है कि एक ही आवेदन पत्र में विस्तृत सूचनाएं मांगे जाने से जन सूचना अधिकारी के लिए तीस दिन में सूचना उपलब्ध कराना संभव नहीं हो पाता है।
दरअसल, राज्य सूचना आयोग ने सूचना का अधिकार-2005 की धारा 27 के तहत उत्तर प्रदेश सूचना का अधिकार नियमावली-2015 को अंगीकृत करने का प्रस्ताव शासन को भेजा था। अभी तक राज्य सूचना आयोग बिना किसी नियमावली के ही चल रहा था। मुख्य सूचना आयुक्त जावेद उस्मानी भी मानते हैं कि सब कुछ अव्यवस्थित ढंग से संचालित हो रहा था। सूचना आयोग की प्रस्तावित नियमावली में संशोधन की जरूरत बताते हुए चार जून को संयुक्त सचिव (प्रशासनिक सुधार अनुभाग-दो) डा. नंदलाल ने उसे वापस भेज दिया था। राज्य सूचना आयोग के सचिव को पत्र भेजकर उन्होंने सरकार की मंशा से अवगत करा दिया है। राज्य सूचना आयुक्त स्वदेश कुमार मानते हैं कि पांच सौ से अधिक शब्दों की सूचना से दिक्कत होती है, आवेदनकर्ता पांच-पांच सौ शब्दों की दो सूचना मांग सकता है।
सरकार के सुझाव : ल्लप्रस्तावित नियमावली में जनसूचना अधिकारी को लोक सूचना अधिकारी का पदनाम देने का प्रस्ताव है, लेकिन सरकार इससे सहमत नहीं है। सरकार का कहना है कि उसने अपने सभी शासनादेश, मार्गदर्शिका व नियमावली में ‘जन सूचना अधिकारी पदनाम दिया है। लोक सूचना अधिकारी का पदनाम दिए जाने से भ्रांति उत्पन्न हो सकती है। ल्लप्रस्तावित नियमावली में व्यवस्था है कि यदि आवेदनकर्ता प्रारूप में वांछित समस्त विवरण नहीं देता है, तो जन सूचना अधिकारी इस कमी को इंगित कर संबंधित व्यक्ति को आवेदन पत्र वापस कर देगा। सरकार ने इसमें भी संशोधन के लिए कहा है। सरकार का कहना है कि जन सूचना अधिकारी संबंधित व्यक्ति को बुलाकर आवेदन में कमी को संशोधित कराएं।
सरकार ने कहा है कि प्रस्तावित नियमावली में अपील प्रक्रिया का तो समावेश है, लेकिन फीस नियमावली का नहीं। इसका भी उल्लेख हो। ल्लसूचना न देने वाले अफसरों पर दस हजार से लेकर अधिकतम 25 हजार रुपये का जुर्माना लगता है, लेकिन यह राशि भरी नहीं जाती है। प्रस्तावित नियमावली में व्यवस्था की गई है कि आयोग अपने विवेकानुसार संबंधित जन सूचना अधिकारी से अर्थदंड की वसूली भू-राजस्व के बकाया के रूप में करने के लिए आदेश दे सकता है। सरकार का मानना है कि जन सूचना अधिकारी शासकीय कार्यो का ही निर्वाहन करता है, इसलिए नियमावली में यह प्रावधान उचित नहीं होगा।
खबर साभार : दैनिकजागरण
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